शिमला। भ्रष्टाचार से निपटने के लिए विपक्ष की गैरमौजूदगी में सरकार ने विधानसभा में आज लोकायुक्त बिल पेश कर दिया है। लोकायुक्त शिकायत मिलने से 90 दिन के भीतर जांच को पूरी कर स्पेशल कोर्ट में मामला दायर कर देगा व अदालत को एक साल के भीतर मामले की सुनवाई पूरी कर फैसला देना होगा। अगर स्पेशल कोर्ट एक साल में फैसला नहीं दे पाता तो अदालत को लिखित में कारण बता कर सुनवाई आगामी तीन महीने में व दो साल से पहले पूरी करनी होगी।
बिल में लोकायुक्त को तलाशी लेने व दस्तावेज जब्त करने का प्रावधान रखा है। बिल में मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्री,विधायक और लोक सेवकों के अलावा राज्य सरकार की ओर से पूरी तरह व आंशिक तौर पर वित पोषित व नियंत्रित बोर्ड ,निगम,कंपनी व सोसायटी के अध्यक्षों, उपाध्यक्षों व सदस्यों के भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच का प्रावधान रखा गया है। नए लोकायुक्त को जांच बिल को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सदन में पेश किया।
बिल में झूठी शिकायतपाए जाने पर एक साल की कैद और एक लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान रखा गया है।
बिल के प्रावधान के मुताबिक प्रदेश का नया लोकायुक्त बहु सदस्यीय होगा। इसमें अध्यक्ष के अलावा दो सदस्य होंगे। बिल में व्हीसल ब्लोअर को लेकर कोई प्रावधान नहीं रखा गया है और न ही सू मोटो संज्ञान लेने का प्रावधान है।
बिल में बिल में डायरेक्टर इंक्वारी और डायरेक्ट अभियोजन का प्रावधान रखा गया है।
जो अधिकारी केंद्र सरकार व उसके निगमों, बोर्डों व कंपनी में प्रतिनियुक्ति पर चले गए है लेकिन उनके भ्रष्टाचार की शिकायत राज्य में तैनाती के कार्याकाल में हुए भ्रष्टाचार को लेकर है, के खिलाफ जांच केंद्र सरकार की सहमति के बाद जांच व ट्रायल शुरू किया जा सकेगा। बिल में इंवेस्गिेशन विंग व प्रास्क्यिूशन विंग के किसी भी अधिकारी को लोकायुक्त की सहमति के बगैर स्थानंतरित नहीं किया जा सकेगा। लोकायुक्त को अगर यह लगे कि जिस अधिकारी के खिलाफ जांच चल रही है वह सबूतों से छेडछाड़ कर सकता है या जांच को प्रभावित कर सकता है तो उसे स्थानंतरित व निलंबित करने की सिफारिश कर सकता है और सरकार को वो सिफारिश माननी होगी। इसके अलावा लोकायुक्त को यह लगे कि जांच के अधीन अधिकारी संपति को छिपा सकता है या उसे किसी ओर जगह बरतता है तो लोकायुक्त उस संपति की अंतरिम कुर्की कर सकता है।
बिल के मुताबिक लोकायुक्त भ्रष्टाचार के मामलों के ट्रायल के लिए स्पेशल कोर्ट खोलने की सिफारिश कर सकता है।
बिल में लोकायुक्त उन्हीं शिकायतों की जांच कर सकेगा जिसमें अपराध शिकायत की सात साल की अवधि के भीतर किया गया हो। इस बिल के पास होने पर प्रदेश का लोकायुक्त अधिनियम 1983 निरस्त हो जाएगा।
लोकायुक्त बिल के मुख्य बिंदु
प्रदेश का लोकायुक्त तीन सदस्यीय होगा। लोकायुक्त का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश या हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश होगा।
मुख्यमंत्री, मंत्री ,विधायक व सभी पब्लिक सर्वेंट लोकायुक्त के दायरे में ।
शिकायत की जांच 90 दिन में व ट्रायल एक साल में पूरा करने का प्रावधान
स्पेशल कोर्ट खोलने की सिफारिश करने का प्रावधान
दो सदस्य होंगे जिनमें से एक न्यायिक सदस्य होगा। न्यायिक सदस्य उच्च न्यायाधीश या जिला न्यायाधीश होगा जिसके पास दस साल की न्यायिक सेवा करने अनुभव हो।
लोकायुक्त का अध्यक्ष या सदस्य संसद व विधानसभा का सदस्य नहीं हो सकता।
लोकायुक्त व सदस्यों की नियुक्ति पांच सदस्यीय कमेटी करेगी।मुख्यमंत्री कमेटी का अध्यक्ष होगा। विधानसभा अध्यक्ष,विधानसभा में विपक्ष नेता,हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश राज्यपाल की ओर से नामित एक विधि विशेषज्ञ इस कमेटी के सदस्य होंगे।
लोकायुक्त अध्यक्ष व सदस्यों के चयन के लिए खोजबीन कमेटी बनेगी।कमेटी में एक सदस्य एससी,एसटी,ओबीसी,माइनोरिटी व महिलाओं में से होना लाजिमी है।
लोकायुक्त का अध्यक्ष व सदस्य को दोबारा इन पदों पर नहीं रखा जा सकेगा। अधिकतम आयु 70 साल रखी गई है व कार्याकाल पांच साल का होगा व ये लोकसभा व विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे।
लोकायुक्त में जांच निदेशक व निदेशक अभियोजन होगा ।सरकार का निदेशक अभियोजन लोकायुक्त का निदेशक अभियोजन होगा। जांच निदेशक की नियुक्ति लोकायुक्त के अध्यक्ष की ओर से की जाएगी।जांच निदेशक एडिशनल सेक्रेटरी के स्तर से नीचे का अफसर नहीं होगा।
लोकायुक्त की सिफारिशों पर सरकार उसे स्टाफ मुहैया कराएगा।
लोकायुक्त की न्यायापीठें शिमला में होगी। इसके अलावा लोकायुक्त की सिफारिशों पर खोली जाएंगी। न्यायापीठ का अध्यक्ष न्यायिक सदस्य होगा।
जांच करने का बाद ट्रायल के लिए लोकायुक्त मंजूरी देगा।
लोकायुक्त में पब्लिक सर्वेंट को अपनी आय का हर साल विवरण पेश करना होगा। इंवेस्टिगेशन व प्रास्कियूशन विंग जांच में शामिल किसी भी अधिकारी को लोकायुक्त की सिफारिशों के बिना स्थानंतरित नहीं कर सकेगा।
लोकायुक्त को लोकसेवक की संपति कुर्क करने का अधिकार होगा।जहां सबूतों से छेडछाड व जांच को प्रभावित करने का अंदेशा होगा वहां लोकायुक्त संबधित अधिकारी को निलंबित व स्थानंतरित कर सकेगा।
लोकायुक्त भ्रष्टाचार के मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए स्पेशल अदालतों की सिफारिश करेगा। अदालते एक साल के भीतर सुनवाई पूरी करेगी।
लोकायुक्त अपने अध्यक्ष व सदस्य के खिलाफ की गई शिकायत की जांच नहीं करेगा।
अध्यक्ष व सदस्य को कम से कम 25 विधानसभा सदस्यों की ओर से हसताक्षरित याचिका के बाद एक प्रक्रिया पूरी करने पर राज्यपाल की ओर से हटाया जा सकेगा।
लोकायुक्त में तैनात कर्मचारी व अधिकारी की शिकायत की जांच लोकायुक्त को 30 दिन के भीतर पूरी करनी होगी।
स्पेशल कोर्ट लोकसेवक के दोषी पाए जाने पर उसकी ओर से किए कारनामें से अगर सरकारी खजाने को नुकसान हुआ है तो उसकी भरपाई दोषी अधिकारी से करने का आदेश देगा।
झूठी शिकायत पाए जाने पर शिकायत कर्ता को एक साल कैद व एक लाख के जुर्माने का प्रावधान।
लोकायुक्त के जांच विंग को सिविल अदालत की शक्तियां प्राप्त होगी व वह किसी को भी सम्मन कर सकतीहै और दस्तावेज मंगा सकती है।
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