शिमला।हिमाचल प्रदेश में 25 मेगावाट से कम केे हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट केंद्र व प्रदेश सरकार के कारनामों के चलते पलायन की राह पर है। आलम ये है कि 1995 से लेकर अब तक हिमाचल सरकार 651 छोटे प्रोजेक्ट आवंटित कर चुकी है इनमें से केवल 71 ही चल पाए हैै।बाकी के सरकार की नीतियों व फैसलों वजह से या तो क्लीयरेंस के जांल में फंसे हैंं या कानूनोंं के फंदे में हैं।
इसके अलावा जोो छोटे -छोटे पॉवर प्रोजेक्ट बन कर तैयार हो भी गए हैं,उनसे भी सरकार के अदारे बिजली नहींं ले खींच पा रहे है। इसके लिए सरकार ने जरूरी बुनियादी ढांचा(सब-स्टेशन) की तैयार नहीं किया है। ऐसे में करोड़ों का नुकसान जहां सरकार को हो रहा हैं वहीं डवलपर्स को भी हो रहा है।ये खुलासा यहा राजधानी में हिमाचल प्रदेश बोनाफाइडी डवलपर पॉवर एसोसिएशन के अध्यक्ष रोजश शर्मा व सलाहकार बृज मोहन खन्ना ने किया।
एसोसिएशन ने कहा कि जो गाइडलांस बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए हैं वहीं गाइडलाइंस छोटे प्रोजेक्ट्स के लिए भी लागू की जा रही है।ये छोटे डवलपर्स के नाइंसाफी है। छोटे डवलपर्स के लिए अलग गाइडलाइंस होनी चाहिए ।राजेश शर्मा ने कहा कि पिछले दो सालों से प्रोजेक्ट्स लगने की गति थम गई है ।
डीएलसी हाइड्रो ने तीन प्रोजेक्ट्स लिए थे, दो तो चल पड़ेलेकिन तीसरे की वैरीफिकेशन दो सालों से नहीं हो रही हैै।सीडीपीएल वालों ने बड़े प्रोजेक्टस लिए,वो चले गए हैं।इसी तरह डीएलआइ ने 27 प्रोजेक्ट्स लिए थे, दो तीन बना दिए बाकी के सारे सरेंडर कर दिए गए है।मोजर जैसी बड़ी कंपनियां पलायन कर गई है और बाकी डवलपर्स नहीं आ रहे है। उन्होंने कहा कि पॉलिसी में बार- बार बदलाव किया जा रहा है।
शर्मा ने प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार का बचाव करते हुए हिमाचल सरकार ने पॉलिसी में बहुत से बदलाव किए है लेकिन अब मोदी सरकार को इस मसले पर कई बदलाव करने होंगे।
राजेश शर्मा ने कहा कि छोटे डवलपर्स को प्रदेश में 1704 मेगावाट पावर बननी है। इसमें से 828 मेगावाट के प्रोजेक्ट्स के लिए वन क्लीयरेंस के भेजेे जा चुके है।उन्होंने दावा किया कि अगर ये प्रोजेक्ट्स लगते है तो प्रदेश में 20 हजार करोड़ का निवेश होगा।तीन साल केलिए 15 हजार अस्थाई रोजगार मिलेगा व 3700 युवाओं को स्थाई रोजगार मिलेेगा।
एसोसिएशन ने स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को भी कटघरे में खड़ा किया। एसोसिएशन के प्रधान ने कहा कि बोर्ड केअफसर न केंद्र सरकार ,न केंद्रीय बिजली नियामक आयोग,न स्टेट बिजली नियामक आयोग और न ही प्रदेश सरकार के आद्रेशोंं को मानते हैं। हाइड्रो पॉवर को केंद्र व केंद्रीय संस्थानों ने व्हाइट केटेगरी में डाल दिया है। इससे डवलपर्स को एक ही बार कंसेंट ऑफ आपरेशन व कंसेंट ऑफ इस्टेबिलिश लेना होता है। लेकिन बोर्ड केअफसर ये नहीं मान रहे है। इसकेअलावा डवलपर्स को 15फीसद पानी छोड़ना होता है। लेकिन ये जांचने के लिए जो उपकरण लगााना पड़ता हैं वो बाइवल नहीं है।इसके लिए वो पाइप लगा सकते है। लेकिन बोर्ड के बाबू ये मानने को तैयार ही नहीं है।
राजेश शर्मा ने कहा कि टेरिफ के मामले में भी डवलपर्स परेशानी में है। टेरिफ की मौजूदा स्िथति को बदला जाना चाहिए।इसके अलावा कंपेंसेंटरी फारेसट का मामला भी परेशानी खड़ी करने वाला है।
उन्होंने कहा कि ट्रासंमिशन लाइन मंहगी पड़ रही है। इसलिए उन्होंने केबल डालने का प्रस्ताव दिया ।लेकिन केंद्र सरकार इसको मामने को तैयार ही नहीं । बाबूओ का कहना है कि इस बावत गाइडलाइंस ही नहीं है।
एसोसिएशन के सलाहकार ने कहा कि पंचायतों व स्थानीय लोगों ने डवलपर्स से एक तरह की उगाही का कारोबार चला रखा है। ये गलत है इसे रोका जाना चाहिए।
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