शिमला। दिसंबर 2015 में ब्रिटिश राज की राजधानी के एतिहासिक रिज पर लगाए गए 100 फुट उंचे तिरंगें की दुश्मन तेज हवाएं बनी है या कोई और खुराफात हो रही है।ये निगम ढूंढ नहीं पा रहा है ।हालांकि निगम ने कोशिश जरूर की है। आलम ये है कि महज चार महीनों में राष्ट्रीय झंडे तिरंगे को तेज हवाएं चार बार चुकसान पहुंचा चुकी है व नगर निगम शिमला को इसे हर बार बदलना पड़ा है। नगर निगम शिमला ने आज मंगलवार को तिरंगें को चौथी बार बदला गया है। अब नगर निगम शिमला के पास बदलने के लिए एक ही तिरंगा बचा है।
बहुत उंचा होने की वजह से ये तिरंगा तेज हवाओं को नहीं झेल पाता और ये फट जाता है। तिरंगें को फहराने के लिए बने प्रोटोकॉल के तहत फटा तिरंगा नहीं फहराया जा सकता।ऐसे में नगर निगम शिमला के अधिकारियों को बार-बार तिरंगें को बदलने के मशक्त करनी पड़ रही है।एक साल तक तिरंगे के रखरखाव पूरी तरह से निजी कंपनी की ओर से किया जाना है। कंपनी ने छह झंडे निगम को दे रखे है।इनमें से चार बदले जा चुके है और जो आज बदला गया वो पांचवा तिरंगा है।अगर तिरंगा इसी तरह बदलना पड़ा तो ये किसी भी तरह व्यावहारिक नहीं होगा।
लेकिन नगर निगम के सहायक कमिशनर प्रशांत सरकैक तिरंगें के फटने की वजह कुछ और बताते है। उन्होंने रिर्पोर्ट्र्ज आई से कहा कि मास्ट में किसी जगह पर समस्या थी। निगम ने पिछली बार वहां पर टेप लगा दी थी । इस बार जहां टेप लगी थी वो खुरच गई तो यहीं से तिरंगा इस बार भी फटा है। अब इसे पेस्ट कर दिया गया है। सरकैक ने कहा कि शायद अब समस्या का समाधान हो गया है।
यहां ये स्पष्ट करना लाजिमी होगा कि तिरंगे को लगाने में जिंदल इंडिया से कोई लेना देना नहीं है।शहर के बहुत से लोगों का ये धारणा है कि तिरंगें को फहराने को लगे मासट को जिंदल स्टील ने खासतौर पर बनाया है। लेकिन ऐसा नहीं है।
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