शिमला।अरबों रुपयों के फर्जी डिग्री आवंटन घोटाले में प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से बीते रोज मानव भारती विवि के मालिक व अध्यक्ष की अंतरिम जमानत याचिका खारिज करने के बाद जिला सोलन पुलिस की ओर से गिरफ्तार किए गए राज कुमार राणा को सोलन की एक अदालत ने दो दिन के पुलिस रिमांड पर भेजा है। पुलिस ने राणा को आज सीजेएम सोलन राजेश चौहान की अदालत में पेश कर दस दिन का पुलिस रिमांड मांगा। लेकिन अदालत ने पुलिस को राणा का सोमवार तक का पुलिस रिमांड दिया व उसे सोमवार को अदालत में पेश करने के आदेश दिए।
एएसपी सोलन शिव कुमार ने कहा कि पुलिस ने दस दिन का रिमांड मांगा था दो दिन का ही मिला है। आरोपी को सोमवार को अदालत में दोबारा पेश किया जाएगा।
पुलिस के मुताबिक राणा पर 2009 से अब तक चार से पांच लाख फर्जी डिग्रियां बेचने का संदेह है। वह उतराखंड में भी एक विवि खोलने जा रहा था व इसके लिए उसने वहां की सरकार से सौ बीघा जमीन भी लीज पर ले ली थी। याद रहे राणा ने पूर्व की प्रेम कुमार धूमल की सरकार में ये विवि खोला था व वीरभद्र सिंह सरकार में इसका कारोबार खूब फलाफूला।
पुलिस के मुताबिक उसके खिलाफ दूसरे राज्यों में भी मामले दर्ज हुए है।उसकी एक सहयोगी जो हरियाणा की रहने वाली है को पूना पुलिस भगौडा घोषित किया था। सोलन पुलिस को उसकी भी तलाश है। वह इस विवि में क्लर्क लगी थी व बाद राणा की बेहद करीबी बन गई । पुलिस के मुताबिक फर्जी डिग्रियों के कोरोबार का अधिकांश काम यही संभालती थी।
पुलिस का दावा है कि जो रिकार्ड कब्जे में लिया गया है उसमें अस्सी –अस्सी लाख की एंट्री दर्ज है।इसके अलावा भी
पुलिस के मुताबकि राणा का एक न्यूज चैनल भी है। जिसका नाम ए टू जेड है।इसने एक ट्रस्ट बना रखा है जिसमें ये व इसकी पत्नी दो ही लोग न्यासी है।
याद रहे फर्जी डिग्री मामले में अंतरिम जमानत पर चल राणा को सोलन पुलिस ने प्रदेश हाईकोर्ट से अंतिरम जमानत खारिज होने के बाद बीते रोज गिरफतार कर लिया था। 2009 से अब तक लाखों फर्जी डिग्रियां बांट कर कई करोड़ों हड़प चुका राणा ने कोरोना महामारी को आड़ बनाकर दो जून आनलाइन अंतिरम जमानत के लिए आवेदन किया था व हाईकोर्ट ने इसे अंतिरम जमानत दे दी थी। अदालत ने साथ ही पुलिस को 17 जून को जवाब देने को कहा था।बीते रोज राणा की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई व राणा की ओर से वरिष्ठ वकील नरेश्वर चंदेल ने लंबे समय तक राणा को नियमित जमानत देने का आग्रह किया।
अभियोजन की ओर से जब पुलिस ने अदालत में राणा के हैरतअंगेज कारनामों का काला चिटठा खोला तो सभी हैरान रह गए व प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने राणा की दी अंतरिम जमानत खारिज कर दी।
इसके बाद हाईकोर्ट के बाहर पहले से तैनात पुलिस ने राणा को गिरफतार कर लिया था।
राणा ने 2009 से जब प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की सरकार से लेकर बाद में वीरभद्र सिंह सरकार तक फर्जी डिग्रियों को ऐसा कारोबार चलाया कि इसे पूछने वाला कोई नहीं था।
पुलिस के मुताबिक इसने अपनी तमाम गाडि़यों का रंग काला करवाया हुआ था व उने गवर्नमेंट आफ इंडिया लिखाया हुआ था। ऐसे में वैसे ही कोई पूछता नहीं था।
लेकिन एक शिकायत कर्ता ममता की ओर से शिकायत आने के बाद इस पूरे फर्जी डिग्री कांड का भंडा फूटा ।ममता ने मानव भारती विवि से मनोविज्ञान की डिग्री ली हुई थी। बाद में इसे हरियाणा में नौकरी मिल गई। जब विभाग ने इसकी डिग्री के सत्यापन को लेकर मानव भारती को चिटठी लिखी तो राणा का विवि मुकर गया कि उनकी कोई ममता नामक की छात्रा भी रह चुकी है। इसके बाद इन शातिरों ने धर्मपुर थाने ममता के खिलाफ उनके विवि की डिग्री लेकर लेकर एफआइआर तक करा दी। वह चीख -चीख कहती रही कि उसकी फर्जी डिग्री नहीं है।उसके खिलाफ एक एफआइआर चरखी दादरी में भी हो गई।
इसके बाद पुलिस को दाल में कुछ काला लगा तो पुलिस ने मार्च में विवि पर छापा मार दिया व वहां से फर्जी डिग्री का सारा सामान मिल गया। इसके अलावा इसका एक और माधव विवि राजस्थान के माउंट आबू में भी है। पुलिस ने वहां भी छापेमारी की कई फर्जी डिग्रियां व अंकतालिकाएं, आंसरशीट से लेकर बुहत कुछ मिला। इसके अलावा कंप्यूटर भी जब्त किए गए। उन्हें फारेंसिक जांच को भेजा गया तो 2009 से लेकर अब तक सारा फर्जी कारोबार को भंडा फूट गया।
एएसपी के मुताबिक इसने फर्जी डिग्रियां देने के लिए देश भी में बाकायदा एजेंट तैनात किए हुए है। उनका पूरा ब्योरा मिल चुका है।जो कर्मचारी इसके विवि में है उन सभी को इसने फर्जी डिग्रियां दी हुई। खुद भी इसके पास दर्जनों डिग्रियां है और यह जोधपुर बार का सदस्य भी है।
जब भी कभी फर्जी डिग्रियों के दम किसी को सरकारी नौकरियां मिल जाती थी तो जब विभाग से सत्यापन के लिए डिग्री आती थी तो वह उस डिग्री को अपनी मानने से इंकार कर देता था। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति के खिलाफ एफआइआर भी दर्ज करवा देता था।
फर्जी डिग्री पर नंबर, मोहर और दस्तख्त किसी ओर के करवाए जाते थे।जबकि सही डिग्री पर सब कुछ ठीक होता था। चूंकि सही डिग्रियों के लिए सीटें यूजीसी व अन्य संस्थानों से मंजूर होती थी। इससे ज्यादा डिग्रियां नहीं दी जा सकती । इसलिए इसने पांच लाख रुपए में फर्जी डिग्री देने का धंधा चलाया व यह छात्रों को अंक तालिका से लेकर साब कुछ देता था।
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