नई दिल्ली। 1998 से 2003 के बीच पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के शासनकाल में हमीरपुर स्थित हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड में हुए भर्ती घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईएएस अफसर व बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन सुरेंद्र मोहन कटवाल,मेंबर विद्यानाथ,लाभ लेने वाले अभ्यर्थी राकेश कुमार छाबड़ा व मदन गोपाल की सजा को बहाल रखा है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी गोपाला गौड़ा व जस्टिस आर भानुमति ने इन सबकी याचिकाओं की सुनवाई के बाद आज ये फैसला सुनाया।इसे कटवाल व धूमल के लिए बड़ा़ झटका माना जा रहा हैं।
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 2003 मेंं सता में आने पर इस मामले की जांच करवाई थी व कटवाल व बाकियोेेंं को निचली अदालत से सजा हो गई थी। इसके बाद ये सब हाईकोर्ट आए तो हाईकोर्ट ने इन सबकी सजा को कम कर दिया व कई धाराएं भी निरस्त कर दी।लेकिन एक-एक साल की जेल की सजा व 10 -10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुना दी।
इसके बाद कटवाल व बाकियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी।सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को बहाल रखते हुए आब्जर्व करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने इन सबकी सजा को कम नहीं करना चाहिए था। इसके अलावा कई धारांए जो निरस्त की हें वो भी निरस्त नहीं की जानी चाहिए थी।
कटवाल व विद्यानाथ पर एक व्यक्ति को मेरिट सूची में शामिल करने के लिए अंक तालिका से छेडछाड़ करने का आरोप साबित हो गया था।
13 मार्च 2011 में धूमल सरकार के समय इस भर्ती घोटाले में प्रदेश हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस सुरजीत सिंह व जस्टिस कुलदीप सिंह की खंडपीठ ने ने एक साल की जेल व 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया था।यही नहीं हाईकोर्ट ने सरकार के उस आग्रह को भी ठुकरा दिया थ जिसमें सरकार ने इनकी सजा बढ़ाने की मांग की थी।
मामला 2000 में शिक्षा विभाग में विद्या उपासकों की भर्ती में का था। विजीलेंस ने अपने केस में कहा था कि पैसों के बदले कटवाल ने अंकतालिका में छेड़छाड़ की थी।जबकि कटवाल की दलीलें थी कि उसे राजनीतिक प्रतिशोध के कारण इस मामले में फंसाया जा रहा है।
विजीलेंस केस के मुताबिक ओवरराइटिंग कर 6 अभ्यर्थियों के अंक बढ़ाए गए थे।जबकि पांच अभ्यर्थियों के इंटरव्यू के कुल अंकों में कोई बदलाव लाए अंक बढ़ाए गए थे। लेकिन अदालत में ये साबित हो गया कि एक अभ्यर्थी के इंटरव्यू व कुल अंकों में बढ़ोतरी की गई थी।ऐसा इसलिए किया गया था ताकि उसे मेरिट सूची में शामिल किया जा सके।
2003 के विद्यासभा चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी खासकर वीरभद्र सिंह ने अधीनस्थ चयन सेवाएं बोर्ड में नौकरियों के बेचने के आरोप लगाकर धूमल सरकार के खिलाफ माहौल खड़ा किया था। इसी दौरान तत्कालीन केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ,मोती लाल बोहरा व अमरेंद्र सिंह ने भी धूमल पर करोउ़ों की संपतियां एकत्रित करने का आरोप लगाया था।धूमल की कमान में भाजपा ये चुनाव हार गई थीव वीरभद्र सिंह ने मुख्यमंत्री बनने पर तत्कालीन डीएसपी व अपने खास चहेते रमेश छाजटा को इस मामले की जांच करने का आदेश दिया था। छाजटा का साथ सरकारी वकील कुलवीर चौहान ने दिया था। मामले पर खूब बयान बाजियां हुईं थी। कटवाल ने वीरभद्र सिंह पर मानहानि के मुकदमें भी किए थे।इस बीच निचली अदालत से कटवाल को इस मामले में सजा हो गई।
कटवाल के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड में सदस्य विद्यानाथ की सजा भी बहाल रखी है।इन दिनों वीरभद्र सिंह खुद भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे हुए हैं व इडी व सीबीआई उनके पीछे पड़ी हैं। अब दोनों को बयानबाजी करने का मौका मिल गया हैं।
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