ओमप्रकाश ठाकुर
शिमला। सिराज के ठाकुर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर,धर्मपुर के ठाकुर महेंद्र सिंह ठाकुर और राजगढ़ के ठाकुर चंद्र मोहन ठाकुर की ठकुराई व प्रबंधन को पच्छाद से भाजपा की बागी दयाल प्यारी ने चुनौती दे दी है। ये चुनौती ठाकुरों को ही नहीं सता केंद्रों के लिए भी है। सिरमौर से सता केंद्रों के लिए पहले भी चुनौती मिलती रही है। वो भी महिलाओं की ओर से । किंकरी देवी ने तो हाईकोर्ट के बाहर धरना देकर देश के अदालतों को जगा दिया था।
लेकिन दयाल प्यारी सी चुनौती न तो कांग्रेस की आशा कुमारी कभी दे पाई है और न ही सोनिया दरबार की करीबी विद्यास्टोक्स। जयराम व धूमल सरकार में मंत्री सरवीण चौधरी भी इस तरह की चुनौती नहीं दे पाई है। ये विद्रोह का झंडा ले के कभी नहीं उठ पाई। अंदरखाते मिलमिलाकर काम चलता रहा।
पिछल्ले दिनों टीसीपी से जुड़े मामलों को लेकर मंत्रियों की एक उप समिति गठित हुई। इसके मुखिया महेंद्र सिंह ठाकुर बनाए गए जबकि मंत्री सरवीण चौधरी थी। लेकिन वह सार्वजनिक तौर पर बगावत नहीं कर सकी। संवभत: उनके पीछे दयाल प्यारी की तरह जनता का तात्कालिक समर्थन नहीं रहा होगा। यही नहीं मानसून सत्र में भी विपक्षी विधायक राजेंद्र राणा को लेकर उनने सदन में एक वाक्या बोल दिया तो जयराम ठाकुर सरकार उनके समर्थन में नहीं आई।
धर्मपुर से ठाकुर महेंद्र सिंह ठाकुर ये भ्रम पाले हुए है कि उनके राजनीतिक कौशल के आगे कोई टिक नहीं सकता है। लेकिन वह पहले भी विधानसभा की रिपोर्टर वैशाली ठाकुर के मामले में आधे से मैदान छोड़ कर भाग चुके है और अब पच्छाद में भी दयाल प्यारी ने उनके प्रबंधन कौशल को धता बता दिया है। दिलचस्प यह है कि वैशाली ठाकुर के मामले में भी तब के विधानसभा अध्यक्ष व अब पच्छाद से कांग्रेस पार्टी के 74 वर्षीय प्रत्याशी गंगू राम मुसाफिर तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष वामपंथी सोमनाथ चटर्जी के सामने नतमस्तक होकर राजधानी लौट आए थे। वैशाली ठाकुर के मामले में महेंद्र सिंह ठाकुर ही नहीं तब के भाजपा अध्यक्ष व अब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी कुछ नहीं कर पाए थे जबकि जयराम ठाकुर की पत्नी साधना ठाकुर व वैशाली ठाकुर आपस में मित्र थी। जयराम ठाकुर ही नहीं , हमीरपुर के समीरपुर गांव के ठाकुर व तब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रेम कुमार धूमल भी उस समय एक सीमा से आगे नहीं बढ़ पाए थे ।
जाबांज ठाकुरों की फेहरिस्त यही खत्म नहीं होती । किन्नौर के राजपूत व तब के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी अपने एक लाडले अफसर को दबोच नहीं पाए थे। आखिर में वैशाली ठाकुर हाईकोर्ट में चली गई थी। उनने वहां पर यौन उत्पीड़न का मामला दाखिल कर रखा है। समीरपुर के ठाकुर धूमल तो बाद में मुख्यमंत्री भी बने लेकिन उनने किया कुछ नहीं। बोलने वालों ने बोला भी, ये सब नाम के ठाकुर।
कांग्रेस-भाजपा के इन ठाकुरों का अब की बार दोबारा इम्तिहान आ गया है। जयराम ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर और सतपाल सत्ती और राजगढ़ के ठाकुर चंद्र मोहन ठाकुर दयाल प्यारी के मामले में पहले चरण में अभी तक तो हार चुके है। आगे ये क्या करते हैं ये देखना है।
लेकिन उन्होंने अभी तक क्या किया इस पर जरा गौर कर लेते है।
दयाल प्यारी को टिकट नहीं मिला तो वह बागी हो गई। होना ही था। उसका दावा बनता था। लेकिन धर्मपुर व सिराज के दोनों ठाकुरों ने कारनामा दिखा दिया और बागी दयाल प्यारी को शिमला अपने दरबार में बुला लिया। आखिर ऐसे संवेदनशील मसले पर एक महिला प्रत्याशी को कौन दरबार में बुलाता है। वह भी नामांकन वापस लेने से एक दिन पहले । यहां पर उसे मनाने का जिम्मा धर्मपुर के ठाकुर महेंद्र सिंह ने ले लिया तो रोहड़ू से पंडित मंत्री सुरेश भारद्वाज सीन से खिसक लिए। यहां जो वहां सो हुआ। लेकिन बाजीगरों ने उसे अपने घर पच्छाद नहीं जाने दिया और सोलन में रुकवा लिया।
उधर,घर पर तो प्रतिक्रि या होनी ही थी। सो हुई भी। दयाल प्यारी के पति और ससुर बाकी लोगों संग उसे ढूंढने सोलन पहुंच गए। जमकर हंगामा हो गया। तब जाकर ठाकुरों को पता चला कि सब उल्टापुल्टा हो गया है। हाथ जल जाने के बाद ये पीछे हटे लेकिन तब तक जो होना था वो हो चुका था। ठाकुरों को शायद नहीं पता की किन्नौर का राजपूत ध्वाला अपहरण कांड में हाथ जला चुका है। इसके अलावा धर्मशाला से सांसद किश्नकपूर भी इसी तरह के अपहरण के नाटक में मुकदमा झेल रहे है। ये तो किस्मत अच्छी की दयाल प्यारी प्रकट हो गई। अगर एक दो घंटा वह नहीं मिलती तो लोग हाईकोर्ट चले जाते और फिर ठकुराई का क्या होना था, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम नहीं था। क्योंकि वह मुख्यमंत्री से मिलने के बाद घर लौटी थी।
कायदे से होना तो यह चाहिए था कि दयाल प्यारी को टिकट दे दिया जाता। लेकिन नहीं दिया। वह बागी हो ही गई थी तो उन्हें मनाने उनके घर जाते। वहीं पर उनसे व उनके समर्थकों से मुलाकात कर लेते । सता का दंभ इतना कि ऐसा नहीं किया।
बताते है कि उधर इन तमाम घटनाक्रमों पर समीरपुर से धूमल व उनके पुत्र अनुराग ठाकुर भी नजर बनाए रखे थे। नजर ही बनाए रखे थे या कुछ और भी किया होगा ,इस बात का पता नहीं है। आखिर वो भी तो ठाकुर ठहरे।
दयाल प्यारी की चुनौती व उनका चुनाव मैदान में तमाम दबाव के बाद उतरना इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि उनने चुनौती दी या वह बागी हो गई। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि वह दलित है, ऊपर से महिला है और उससे आगे उपचुनाव में चुनाव में उतर रही है। इसके अलावा उनके साथ किसी बड़े नेता का भी कोई वरदहस्त नहीं है। वो बेशक हार जाए लेकिन पुरूष वर्चस्व वाले सता केंद्र को जो चुनौती उनने दे है, वह लंबे समय तक याद रखी जाएगी।
अंदेशा ये है कि दयाल प्यारी को हराने में ठाकुरों की ये जुडंली फिर गलती कर बैठेगी और अपनी ठकुराई पर आंच ला बैठेंगे। राजीव बिंदल पर्दे के पीछे कुछ कर रहे होंगे तो पता नहीं लेकिन वह सार्वजनिक तौर पर अभी तक पूरी तरह से खामोश है।
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