शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट प्रदेश में मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों की ओर से जारी किए जाने वाले अपंगता प्रमाणपत्रों पर सवाल उठाते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य को आदेश दिए है कि वह इस मामले पर गौर कर चार सप्ताह के भीतर जरूरी निर्देश जारी करे।
प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायामूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने तबादले के मामले को निपटाते हुए ये आदेश जारी किए है। अदालत ने कहा कि मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों की ओर से जारी इन अपंगता प्रमाणपत्रों में एक नोट लिखा होता है कि इन प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल अदालती कार्यवाही व किसी तरह के मुआवजे के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
खंडपीठ ने कहा कि इस नोट के पीछे जारी करने वाले की मंशा ही ये होती है कि अगर ये पूरी तरह या आशिंक तौर पर झूठा पाया जाता है तो डाक्टरों के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होगी। लेकिन अदालत इसे अब मंजूर नहीं करेगी।
खंडपीठ ने कहा कि अब समय आ गया है कि ये तमाम कारनामें बंद हो जाने चाहिए , अन्यथा सरकारी व निजी डाक्टर ऐसे प्रमाणपत्रों के को जारी करते रहेंगे जिनका कोई न्यायिक औचित्य नहीं है। ये झूठे व मनगढ़ंत से कम नहीं हैहै व इनका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा सकता है।
खंडपीठ ने कहा कि वह इस तरह के प्रमाणपत्रों को जारी करने के पीछे के उददेश्यों को समझ नहीं पा रही है।ये प्रमाणापत्र किस कानून के तहत जारी किए जाते है। अदालत का मानना है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी और चिकित्सा अधिकारी को इस तरह के प्रमाणपत्र जारी करने से पहले खुद को अपंगता के बारे सुनिश्चित करना लाजिमी है।
खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के मामले अदालतों में आए दिन आए रहते है। इसलिए इन पर अब रोक लगनी चाहिए।
यह मामला एक स्कूल कर्मचारी की ओर से अदालत में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया। सरकार ने याचिकाकर्ता का एक स्कूल से दूसरे स्कूल के लिए तबादला कर दिया था व उसने अपनी याचिका के साथ 1994 में जारी 45 फीसद अपंगता का प्रमाणपत्र लगा रखा था। अदालत ने पाया कि ये प्रमाणपत्र मेडिकल बोर्ड की ओर से जारी नहीं किया गया है और इसमें एक नोट भी लिखा हुआ है।याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि उसका तबादला डीओ नोट के आणर पर किया गया है और जिस स्कूील में किया गया है वह सड़क से डेढ़ किलोमीटर दूर भी है। इसलिए वह पैदल स्कूल तक नहीं पहुंच सकती। लेकिन शिक्षा विभाग ने अदालत में उक्त कर्मचारी की ओर से किसी दूसरे स्कूल में तबादला कराने के लिए खुद लिए डीओ नोट को अदालत में पेश कर दिया और कहा कि जिस स्कूल में इसका तबादला किया गया है वहां पार्किग भी है और सड़क भी जाती है।
इस पर खंडपीठ ने कहा कि तबादला करना सरकार का अधिकार है। अगर यह गलत मंशा से नहीं किया गया है तो अदालत को इसमें दखल देने की जरूरत नहीं है। अदालत ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया लेकिन अतिरक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य को चार सप्ताह के भी भीतर अपंगता प्रमाण पत्र जारी करने को लेकर अधिकारियों को जरूरी दिशा निर्देश के आदेश दे दिए।
(1)