शिमला।पूर्व मुख्यामंत्री प्रेम कुमार धूमल के करीबी अफसर अरुण शर्मा को वीरभद्र सिंह सरकारी ने हाशिए पर रखने की मंशा से वित निगम का एमडी तैनात किया था लेकिन उन्होंयने वहां जाकर नेताओं की रिकवरी का ऐसा जाल बिछाया कि वीरभद्र सिंह सरकार को उन्हेंय एमडी के पद से हटा देना पड़ा। उन्हें अब कमिश्ऩर विभागीय जांच की कुर्सी पर लगाया गया हैं। वित निगम एक अरसे कर्ज नहीं दे रहा हैं।
कई सालों से अनाप-शनाप कर्ज देने वाला वित निगम कंगाल हो चुका हैं व 17 सौ करोड रुपए के करीब की कर्जदारों से रिकवरी की जानी हैं। कर्ज लेने वाले कोई छोटे मोटे लोग नहीं हैं, इनमें कई नेता व नेताओं के चम्मचे शुमार हैं।
जब से वित निगम का गठन हुआ था तब से निगम पूरी तरह से नौकरशाहों के कब्जेट में रहा हैं। निगम के बोर्ड ऑफ डायरेक्टवर में एक भी नेता नहीं था। बावजूद इसके वित निगम नौकरशाहों की कमान में गर्त में चला गया और किसी भी नौकरशाह से जवाबदेही नही मांगी गई। मोटी पगार पाने वालेये नौकरशाह आज भी मजे में हैं और सरकार में कांड पर कांडकिए जा रहे हैं।
निगम के अफसर कहते है कि अदालतों ने भी कभी संज्ञान नहीं लिया ।जबकि अकाउंटेंट जनरल कार्यालय ने भी वित निगम की करतूतों पर कभी नजर नहीं दौड़ाई।
जब वीरभद्र सिंह सरकार ने डिफंक्ट हो चुके वित निगम के एमडी पद पर अरुण शर्मा की तैनाती की तो अरुण शर्मा ने फाइलें खंगालनी शुरू की। फाइलों में जो मिला वो चौंकाने वाला था। ये उन आईएएस अफसरों के कारनामों की कहानी थी जो,कभी वित निगम के एडी रहे व बाद में चीफ सेक्रेटरी की कुर्सी तक पहुंचे ।कम से कम आठ से दस आईएएस ऐसे थे जो वित निगम के एमडी रहे व बाद में चीफ सेक्रेटरी भी बने।
लेकिन कभी किसी नौकरशाह ने निगम से लिए गए कर्ज की रिकवरी पर काम ही नहीं किया। यही नहीं रिकवरी का प्रोसीजर तक गलत अपनालिया गया। ऐसे में दर्जनों ऐसे है जो वित निगम का लाखों करोड़ों का कर्ज डकार गए। इस काम में बैंकों की भूमिकाएं भी संदिग्धी रही हैं। बैंकों को हर तीन साल बाद गारंटियों की समीक्षा करनी होती हैं, वित निगम की फाइलें बताती हें कि निगम के कर्जों पर बैंकों ने जमकर खेल दिखाएं हैं। गारंटियों की समीक्षा ही नहीं की।
अरुण शर्मा ने वित निगम में प्रदेश के खजाने से वेतन लेने वाले नौकरशाहों के कारनामों को उजागर किया हैं।उन्हों ने चीफ सेक्रेटरी विद्या चंद फारका से लेकर प्रिंसिपल् अकाउंटेट जनरल तक को चिटिठयां लिखी थी व ये जानना चाहा था कि ये संस्थान अपनी संवैधानिक व कानूनी डयूटियां कैसे भूल गए थे।
इन चिटठयों में उन्होंगने लिखा हैं कि वित निगम ने जिन लोगों को कर्ज दिया ,उनमें से कइयों के पते ही नहीं मिल रहे हैं।गांरटियों का पता नहीं हैं। कर्ज लेने वालों में भाजपा ,कांग्रेस नेताओं के अलावा कई मौजूदा व पूर्व विधायकों के परिवार भी शामिल हैं।
बहरहाल, इन चिटिठयों का कभी जवाब नहीं आया। कहा जा रहा है कि कई मामलों में तो मनी लांड्रिंग तक का अंदेशा हैं।
राजनीतिक रसूख वाले एक शख्सह ने 2004 में दस लाख का कर्ज लिया था,। जिस काम के लिए कर्ज लिया गया ,वो काम कभी किया ही नहीं गया। उस शख्स ने पचास लाख लौटा कर अपना मामला निपटा दिया हैं।ये पचास लाख कहां से आया ये जांच का विषय हैं।कहीं मनी लांड्रिंग तो नहीं हुई ।
बहर हाल अब आईएएस अफसर (पहले एचएएस) अरुण शर्मा का तबादला कर दिया गया हैं। नए एमडी किस रफ्तार व किसकी टयून पर चलेंगे , ये देखना होगा। ये सही है कि अरुण शर्मा पूर्व मुख्यिमंत्री धूमल के करीबी अफसर रहें हैं व अगर प्रदेश में इस साल होने वाले चुनावों में भाजपा के हाथ सता लगी तो अरुण शर्मा को बड़ा ओहदा मिलना तय हैं।हालांकि वो रिटायरमेंट के भी करीब हैं।ऐसे में वो किसी तरह का होमवर्क कर गए हों, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
लेकिन बड़ा सवाल ये हैं कि क्याय उनकी प्रदेश की जनता के पैसे की रिकवरी करने की मुहिम गलत थी। आखिर वीरभद्र सिंह सरकार से जुड़े वो कौन लोग हैं जो इस राशि को रिकवर नहीं होने दे रहे हैं।कहीं ये वो कर्जदार तो नहीं हैं जो वीरभद्र सिंह सरकार के करीबी हैं।
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