मला। कसुम्प्टी विधानसभा हलके से वामपंथी प्रत्याशी व पूर्व आइएफएस अफसर कुलदीप सिंह तंवर ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जो कि बुशहैर राजपरिवार से हैं के खिलाफ तीखा इल्जाम लगाया हैं।बीते रोज वीरभद्र सिंह केबिनेट ने हेरिटेज पॉलिसी की घोषणा की थी,जिसे वामपंथियों ने राजे-रजवाड़ों के जर्जर हो चुके भवनों को सरकारी खज़ाने से सजाने-संवारने का इंतजाम करार दिया हैं।
उन्होंने कहा कि पहले राजशाही ने जनता का षोषण करके अपने आलीशान महल खड़े किए और आज जब उनके पास इस ढांचे के रखरखाव के लिए न तो आज बेगार प्रथा रही और न ही जनता के षोषण करने की ताकत रही तो वे पिछले दरवाज़े से जनता का पेसा आने महलों को संवारने के लिए लगाने की साजिश रच रहे हैं।
वामपंथी प्रत्याशी व पार्टी सचिव मण्डल सदस्य तंवर ने कहा कि सांस्कृतिक धरोहर और विरासत केवल राजे-रजवाड़ों की या जनता की मेहनत और बेगार से बने उनके राजमहलों की ही नहीं है बल्कि एक विरासत मेहनतकश अवाम की भी रही है। हमारे कारीगर कुम्भकार, लोहार, छडि़यां बनाने वाले, पारम्परिक वाद्ययंत्र बनाने वाले, काष्ठकला के कारीगर सहित आज सभी तरह के कारीगर आज संरक्षण के अभाव में गरीबी और बदहाली से जूझ रहे हैं।
मशोबरा खण्ड के मोहनपुर, थोटी आदि गांवों से छडि़यां बनाने वाले लोग आज बदहली का जीवन जी रहे हैं। शिमला का लक्कड़ बाज़ार पूरे देश में लकड़ी की कारीगरी की तरह-तरह की चीज़ों के लिए प्रसिद्ध था जो आसपास के गांवों से बनकर आती थी लेकिन अब न तो लोगों को जंगलों से उन चीज़ों को बनाने के लिए लकडि़यां लेने की इजाज़त है और न ही उन्हें किसी तरह का प्रोत्साहन दिया गया।
तंवर ने कहा कि उनकी पार्टी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के खिलाफ नहीं है लेकिन मेहनतकश जनता की समृद्ध विरासत को नज़रअंदाज़ करना सही नहीं है।
तंवर ने कहा कि सरकार अगर पर्यटन को प्रोत्साहित करना चाहती है तो उसे पर्यटन स्थलों को बेहतर ढंग से विकसित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजधानी के नज़दीक ही कुफरी पर्यटन स्थल है जिसके साथ आसपास की पंचायतों बणी, चियोग, सतोगए दरभोग, कुफरी, पटगैहर आदि पंचायतों के कम से कम 2000 लोगों का रोज़गार जुड़ा है लेकिन सरकार ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया और न ही इसे विकसित करने की योजना बनाई।
उन्होंने कहा कि अपने महलों को सरकारी खजाने से संवारने के बजाय सरकार को चाहिए कि वह हमारे कारीगरों और उनकी विरासत के संरक्षण के लिए एक ठोस योजना तैयार करे ताकि वे अपनी आजीविका के लिए दर-दर भटकने को मजबूर न हो।
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