शिमला। हिमाचल में अपने बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही वामपंथी पार्टी माकपा ने शिमला नगर निगम चुनावों के लिए बहुत देरी से ही सही मेगा 55 सदस्यों की चुनाव समिति का गठन कर दिया हैं। समिति का संयोजक पूर्व महापौर संजय चौहान व सह संयोजक सीटू के पूर्व के अध्यक्ष जगत राम को बनाया गया हैं।
याद रहे वामपंथियों का मुकाबला भाजपा व कांग्रेस जैसी ताकतवर व घाघ पार्टियों से हैं व जमीन पर चुनावों को लेकर वामपंथियों की कोई खास तैयारी भी नजर नहीं आ रही हैं। समझ जा रहा है कि वामपंथी इस बार आधा दर्जन से कुछ ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। हालांकि अभी प्रत्याशियों के नामों की घोषणा नहीं की गई हैं। 2017 के चुनावों में वामपंथ से जीत कर आए पार्षद व प्रत्याशी भगवा रंग में रंग गए थे।
माकपा ने दावा किया है कि नगर निगम शिमला के चुनाव में बीजेपी व कांग्रेस की आमजन विरोधी नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ जनहित की वैकल्पिक नीतियों के साथ इस चुनाव में मोर्चा बनाकर एक विकल्प के रूप में उतरेगी।
चुनाव समिति में डा ओंकार शाद,ठियोग से पूर्व विधायक राकेश सिंघा, कुलदीप सिंह तंवर, विजेंद्र मेहरा, फाल्मा चौहान, जगमोहन ठाकुर, सत्यवान पुंडीर, राजिंद्र चौहान, टिकेंद्र पंवर, राम सिंह,बालक राम, रीना सिंह, अनिल ठाकुर, महेश वर्मा, विजय कौशल, किशोरी डटवालिया, विनोद बिसरांटा, सुरिंदर तंवर, सोनिया सुबरवाल, बलदेव, हिम्मी, रमाकांत मिश्रा, रामू, रमन थारटा, दलीप, अमित, अशोक वर्मा, पूर्ण,सुरेंद्र बिट्टू, बाबू राम, रंजीव कुठियाला, नेहा, विवेक राज, जिया नन्द, सुरेश पुंडीर, सीमा,,कपिल, गोविंद चित्तरांटा, विवेक कश्यप, जय शिव, नवीन, होशियार, सुरजीत, हरीश, अंकुश, राजीव ठाकुर, संजीव भूषण, विश्वभूषण, दलीप कायथव सुरिंदर वर्मा को कमेटी का सदस्य बनाया गया है।
समिति के संयोजक व पूर्व महापौर संजय चौहान ने कहा कि सीपीएम चुनाव में पिछली नगर निगम के कार्यकाल में बीजेपी के द्वारा लागू की गई निजीकरण, सेवाओं को महंगा कर आर्थिक बोझ डालने, ठेका प्रथा, नगर निगम की स्वायत्तता पर हमला, कर्मचारियों की भर्ती पर रोक आदि जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध इस चुनाव में उतरेगी तथा जनता के समक्ष वैकल्पिक नीतियों के साथ बीजेपी व कांग्रेस के मुकाबले एक सशक्त विकल्प देगी।
उन्होंने दावा किया कि’सीपीएम के नेतृत्व में 2012 के बाद नगर निगम द्वारा पेयजल के निजीकरण को रोका गया तथा इसकी आपूर्ति के सुधार के लिए महत्वपूर्ण योजना विश्व बैंक से परियोजना स्वीकृत करवाना, उच्च न्यायालय में संघर्ष कर शिमला के लिए स्मार्ट सिटी परियोजना स्वीकृत करवाना, अमरुत परियोजना, रोपवे व वैकल्पिक परिवहन के लिए सिटी मोबिलिटी प्लान बनाना, शिमला शहर के सौंदर्यकरण के लिए परियोजना, पार्किंग, पार्क, खेल मैदान, आधुनिक कूड़ा से बिजली बनाने का संयंत्र लगवाने, बुक कैफे व अन्य परियोजनाओं की शुरुआत कर शहर के विकास को जनता की भागीदारी से उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप दिशा दी गई।’
याद रहे 2012 में नगर निगम के हुए प्रत्यक्ष चुनावों में महापौर व उप महापौर के चुनावों को जीत की वामपंथियों ने पूरे देश के राजनेताओं व राजनीतिक विषलेषकों को चौंका दिया था। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में ठियोग से राकेश सिंघा के जीत कर विधानसभा पहुंच जाने से उम्मीद जगी थी कि जब दुनिया भर में वामपंथ समाप्ति की ओर बढ़ रहा है तो उतर भारत के छोटे से राज्य ने उम्मीद की लौ दिखाई थी। लेकिन 2017 के बाद जिस तरह से पार्टी की अंदरूनी खामियों ने पार्टी को कमजोर किया उससे लगता है कि अब इस उम्मीद की लौ बुझने की ओर है।
2017 के बाद संगठन के स्तर पर बहुत कुछ छिन्न भिन्न हो गया और 2022 के विधानसभा चुनावों में इसका नतीजा भी सामने आ गया। प्रदेश में वामपंथी रजनीति अंतर विरोधों की शिकार हो गई हैं। यही कारण है कि जब कांग्रेस व भाजपा निगम चुनावों के लिए तरह-तरह की तैयारियां कर चुकी हैं वामपंथी अब जाकर चुनाव समिति का गठन कर रही हैं और चुनाव समिति भी मेगा स्तर की बना दी गई हैं। यह पार्टी की अंदरूनी हालात को समझने के लिए काफी हैं।
(45)