शिमला। कोरोना महामारी के बीच वामपंथियों ने जिला शिमला प्रशासन को एक बार फिर कटघरे में खडा करते हुए इल्जाम लगाया है कि वह लोगों को अपने घरों को जाने के लिए कर्फ्यू पास बनाने में पिक एंड चूज की नीति अपना रहा है।
वामपंथी पार्टी माकपा के शहरी सचिव बलबीर पराशर ने जिला प्रशासन पर संगीन इल्जाम लगाया कि वह प्रभावशाली लोगों को घर जाने के अनुमति दे रहा है। हालांकि प्रशासन की ओर स जनता की सुविधा दे के लिए कर्फ्यू पास बनाने के लिए वाटसएप नंबर व ई-लिंक जारी किया है लेकिन कर्फ्यू पास मात्र चंद पंहुच वाले लोगों के ही बनाए जा रहे हैं।
इससे पहले भी शिमला मे मजदूरों को बंदी की वजह से पेश आ रही समस्याओं को लेकर जिला उपायुक्त कार्यालय के बाहर माकपा विधायक राकेश सिंघा को धरने पर बैठना पडा था। उसके बाद प्रदेश सरकार ने मात्र कश्मीरी मजदूरों को वापस कश्मीर जाने की अनुमति दी थी।
पराशर ने कहा कि शिमला प्रदेश का एकमात्र ऐसा शहर है जहां पर हजारों की संख्या मे छात्र या तो अध्ययन कर रहे हैं या फिर प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। हजारों लोग निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं व बहुत से अपना रोजगार करते हैं।वह अपने घर लौटना चाहते है लेकिन सरकार व प्रशासन की ओर से जारी किए गए वाटसएप नंबर व ई-लिंक पर किये आवेदनों को तुंरत बिना कारण रद्द किया जा रहा है। मात्र कुछ पंहुच वाले लोगों को पास जारी किए जा रहे हैं।
अभी हाल ही मे प्रदेश सरकार ने घोषणा की थी कि कृषि क्षेत्र मे काम करने के लिए पास दिए जायेंगे। हिमाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों मे आजकल फसल काम चल रहा है। आम जनता व छात्र शिमला से फसल के काम के लिए अपने घर जाना चाहते हैं, लेकिन उनके आवेदनों को अस्वीकार किया जा रहा है। उन्होंने जयराम सरकार व प्रशासन से मांग की कि अपने घरों को जाने के लिए पास बनवाने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाये। आवेदक को उसके आवेदन को रद्द करने के कारण बताया जाये। कर्फ्यू पास बनाने मे प्रशासन पिक एंड चूज की व्यवस्था को समाप्त करे। राजधानी में फंसे प्रदेश विश्वविद्यालय, विभिन्न महाविद्यालयों व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे छात्रों को तुरंत घर पंहुचाने की व्यवस्था की जाये।
भेदभाव कर रही जयराम सरकार
उधर माकपा के राज्य सचिवालय के सदस्य व पूर्व महापौर ने जयराम जयराम सरकार पर भेदभाव इा इल्जाम लगाते हुए कहा कि बीते रोज सरकार ने कोटा के लिए छात्रों को लेने के लिए जो अपने खर्च पर 9 बसे भेजी है उसमें प्रदेश के जो अन्य 10 लोग कोटा में फंसे हुए हैं उनको लाने की इजाजत सरकार ने नहीं दी है।
इसी तरह लम्बी जददोजहद के बाद सरकार ने बड़ी संख्या में कश्मीर के मजदूर जो प्रदेश में इन विषम परिस्थितियों में फंसे हैं उनमें से लगभग 250 मजदूरों को अभी शिमला से अपने घर जाने की इजाजत दी है। लेकिन इनको जिस प्रकार से कोटा के लिये सरकार ने अपने खर्च पर बसें भेजी है इन मजदूरों को बसें नहीं भेजी गई ।
इन मजदूरों को मजदूरों को इस संकट की घड़ी में भी निजी बसों में अपनी जेब से 2000 हजार रुपये प्रति मजदूर के हिसाब से खर्च करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि फंसे लोगों को घरों तक पहुंचाने का खर्च सरकार वहन करें व जो जिला ग्रीन जोन में है उनमें परिवहन व अन्य गतिविधियों को सामान्य रूप में आरम्भ किया जाए
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