शिमला। हिमाचल में दूरदर्शन के कार्यक्रम 24 घंटें रोजाना चलाने की शुरूआत के मौके पर राजधानी शिमला में जिस तरह से मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने याराना दिखाया वह हालीलाज कांग्रेस और जयराम बीजेपी की किलेबंदी का साफ-साफ संकेत हैं।
दूसरी ओर यह पहली बार है कि केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री के बीच इस तरह का याराना पहली बारदेखने को मिला हैं। धूमल परिवार और सुक्खू परिवार की राजनीति पहले बार साझे तौर पर चलती रही हैं। लेकिन यह आगे भी चलती रहेगी इस बावत सुक्खू के मुख्यमंत्री बनने के बाद संदेह खडे हो रहे थे।
सुक्खू और अनुराग दोनों एक ही जिला से हैं। चूंकि कांग्रेस में सुक्खू पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के विरेधी रहे हैं ऐसे में उनको धूमल का साथ मिलता रहा था। इन दोनों परिवारों के कई कारोबारी काम भी होते रहे हैं। कहा तो यह भी जाता है कि इस बार के विधानसभा चुनावों में भी जब सुक्खू को पार्टी के धडे की ओर से ठिकाने लगाने की कोशिशें सिरे चढती नजर आने लगी थी तो धूमल ने आखिरी पलों में हाथ बढाया था। उधर नादौन कांग्रेस की ओर से तो भाजपा सांसद व विवि के पूर्व कुलपति सिंकदर कुमार को नाम भी उछाला गया हैं कि उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को जीताने के बजाय सुक्खू का साथ दिया।चूंकि विधानसभा चुनावों में धूमल परिवार कााकुछ भी दांव पर नहीं था। उनका जो हाल मोदी शाह की जोडी व प्रदेश बीजेपी ने करना था वो किया जा चुका था।
यह सब कितना सही या गलत है इसकी पुष्टि तो कोई नहीं करता लेकिन जमीन कार्यकर्ता जानता है कि किसने क्या किया हैं। बहरहाल दूरदर्शन के कार्यकम में वीरवार को राजधानी पहुंचे अनुराग और सुक्खू ने मंच पर पूरी तरह राजनीति खेली और दोनों ने पार्टी व पार्टी के बाहर अपने विरोधियों को संदेश दे दिया कि अब प्रदेश में किस तरह की राजनीति चलने वाली हैं।
प्रदेश में सुक्खू मुख्यमंत्री बनने के बाद जयराम बीजेपी के निशाने पर तो है ही साथ ही हालीलाज कांग्रेस के साथ मुकेश अब्निहात्री भी ज्यादा सहज नहीं हें1 सुक्खू ने मंत्रिमंडल में विभाग तो बांट लिए लेकिन सता के चाबी पूरी तरह से अपने हाथ में रखी हैं। यानी खुला हाथ किसी को नहीं दिया हैं। पूर्व में वीरभद्र सिंह बिलकुल ऐसा ही करते थे वह भी हर मंत्री की लगाम अपने पास रख कर तमाम मंत्रियों को काबू में रखते थे। बाद –बाद में जयराम ने भी ऐसा ही करना शुरू कर दिया था। इसलिए पार्टी में यह खेमा सहज महसूस नहीं कर रहा हैं।
उधर, भाजपा ने धूमल परिवार को पूरी तरह से घेर कर रखा हैं। 2024 में लोकसभा के चुनाव है और अनुराग ठाकुर को कांग्रेस से ज्यादा अपने भाजपाई मित्रों से खतरा हैं। उनके पिता धूमल को आलाकमान से मिलकर जयराम भाजपा ने राजनीतिक तौर ठिकाने लगा ही दिया हैं। उधर सुजानपुर से उनके कभी बेहद करीबी रहे राजेंद्र राणा को बहुत पहले हालीलाज कांग्रेस उडा कर ले गई हैं।हमीरपुर में राजेंद्र राणा सुक्खू को हालीलाज कांग्रेस से मिलकर चुनौती बने हुए हैं। वह अनुराग के भी राजनीतिक विरोधी हैं। ऐसे में सुक्खू और अनुराग की जुगलबंदी प्रदेश की राजनीति में अलग तरह की किलेबंदी की ओर से संकेत कर रहीहै जिसमें सुक्खू खेमा व धूमल परिवार एक तरफ अपनी राजनीति सेनांए खडी करते नजर आ रहे तो दूसरी तर फ हालीलाज कांग्रेस और जयराम बीजेपी अपनी सेनाएं सजाने की जुगत करते नजर आ रहे हैं।
अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए सुक्खू को हालीलाज को राजनीतिक तौर पर ठिकाने लगाना है और साथ में जयराम बीजेपी को भी जवाब देना हैं। इसी तरह की स्थिति धूमल परिवार की भी है अगर उसे राजनीति में जिंदा रहना है तो उसे नडडा व जयराम बीजेपी को नेस्तनाबूद करना है और जयराम बीजेपी से भी निपटना हैं।
चालाक राजनीति के चेहरे पर जनता से बावस्ता नहीं
सुक्खू और अनुराग दोनों ही नेता चालाक राजनीति करने व मास्टर स्ट्रोक मारने के लिए माने जाते है। लेकिन दोनों का ही जनता के साथ वास्ता ज्यादा नहीं बना हैं। धूमल की वजह से अनुराग के लिए तो फिर भी भाजपा का एक खेमा खडा हो जाता है लेकिन सुक्खू अभी अपनी जमीन जनता के बीच नहीं बना पाए हैं। उन्हें वीरभद्र सिंह ने इस दिशा में आगे बढने भी नहीं दिया था बेशक सुक्खू को अपने राजनीति गुरू पंडित सुखराम के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा और विदया स्टोक्स का पार्टी में साथ मिलता रहा। लेकिन अब उनके लिए रास्ता साफ है । यह दीगर है कि पार्टी प्रधान होने के नाते उन्होंने अपनी एक जुंडली खडी कर ली व इनमें कई जीत कर विधानसभा में पहुंचे भी हैं। लेकिन असल ताकत जनता को अपने साथ करने में हें।
दो महीने की सरकार में वह अभी से कांग्रेस में अपने राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के रास्ते पर चल पडे है। यह राह उनके लिए मुश्किलें खडी कर सकती। कहा जा रहा है कि बीते रोज बंद कमरे में उनकी कुछ घेरेबंदी हुई भी हैं।
प्रदेश के लिए हितकारी
इन दोनों की जुगलबंदी राजनीतिक विरोधियों के लिए बेशक जैसी हो लेकिन प्रदेश के हित में हैं। अब से पहले केंद्रीय मंत्रियों और प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच हमेशा ही तल्खी रही। जब रामलाल ठाकुर मुख्यमंत्री थे तो वीरभद्र सिंह केंद्र में राज्यमंत्री हुआ करते थे। दोनों के बीच तकरार होती रहती थी। आखिर में रामलाल को तो अपनी कुर्सी हीगंवा देनी पडी।। उसके बाद वीरभद्र सिंह मंत्री बने तो सुखराम और उनकी कभी नहीं बनी। 1998 में जब धूमल मुख्यमंत्री बने तो केंद्र में शांता कुमार से उनकी ज्यादा नहीं बनी। कांग्रेस में ही वीरभद्र व आनंद शर्मा में आखिर तक जंग चलती रही।
लेकिन यह पहली बार है कि केंद्रीय मंत्री व प्रदेश के मुख्यमंत्री के बीच मोहब्बत का रसायन लबों पर बिखरा नजर आ रहा हैं। दोनों के राजनीति विरोधी और दोनों का राजनीतिक अस्तित्व मिलकर आगे चलने में ही है। शायद यह दोनों समझ चुके हैं। कम से कम 2024 तक यह समझ बनती आ ही रही हैं।
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