शिमला। किसान नेता राकेश टिकैत के हिमाचल के दौरे के बाद प्रदेश के किसानों में ही नहीं जयराम सरकार से लेकर कांग्रेस व भाजपा जैसे दलों में भी हलचल मच गई है। टिकैत केवल एक ही दिन के लिए हिमाचल आए थे। जिस दिन वह हिमाचल पहुंचे तो सोलन ,कंडाघाट व राजधानी में शिमला में उनसे दर्जनों बागवानों व किसानों ने मुलाकातें की। इनमें वो बागवाना व किसान नेता भी थे जो राजनीतिक दलों से जुड़े नहीं रहे हैं लेकिन चाहते है कि किसानों व बागवानों का एक कोई ऐसा मंच बने जो गैर राजनीतिक हो और बागवानों व किसानों के मसलों पर राजनीति न कर जमीनी समस्याओं को लेकर लामबंद हो।
टिकैत के हिमाचल दौरे के बाद इन किसानों व बागवानों में एक उम्मीद जरूर बंधी है कि कुछ गैर राजनीतिक लामबंदी होंगी। प्रदेश में अभी तक किसानों की हिमायत में कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी दलों से जुड़े किसान व बागवान संगठन है। लेकिन इन तमाम किसान संगठनों का एजेंडा दलदत राजनीति पर आधारित रहा है और किसानों व बागवानों को वोट बैंक का जरिया समझकर ही इनके आंदोलनों की पृष्ठभूमि बनती रही है।
इस राजनीतिक लामबंदी से बागवानों व किसानों का इतना लाभ नहीं हो पाता जितना होना चाहिए था। इन संगठनों में पार्टी विचारधारा से जुड़े लोग ही जुड़ पाते हैं। ऐसे में किसानों व बागवानों का वह बड़ा तबका जो किसी राजनीतिक विचारधारा का पिच्छलग्गू नहीं बनना चाहता वह पीछे रह जाता है जबकि मसले उसी के है जिनको लेकर आवाज मुखर होनी चाहिए।
प्रदेश में बागवानों व किसानों के आंदोलन पहले भी होते रहे है। पूर्व में जब प्रदेश में भाजपा के कददावर नेता शांता कुमार मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो उस समय सेब बागवानों पर गोली चलाई गई थी। तीन बागवान शहीद भी हो गए थे। तब से लेकर आज तक शांताकुमार प्रदेश की सता में विराज मान नहीं हो पाए। लेकिन इस आंदोलन के पीछे तब कांग्रेस की ताकत थी। जैसे ही कांग्रेस सता में आई उसने किसानों के मसलों पर होने वाले आंदोलनों से अपनी ताकत खींच कर ली और किसान आंदोलन की जमीन समतल हो गई।
इसके बाद वामपंथी विचारधारा से जुड़ी किसान सभा ने प्रदेश में बड़ा आंदोलन खड़ा करने की कई कोशिशें की लेकिन वह भी प्रदेशव्यापी आंदोलन खड़ा नहीं कर पाई।
लेकिन जब दिल्ली में किसान आंदोलन शुरू हुआ तो प्रदेश में संयुक्त किसान मोर्चा बन गया। इसमें भाजपा, कांग्रेस और वामपंथी तीनों ही संगठनों के किसान नेता तो आगे आ गए लेकिन आम बागवान और किसान अब तक भी संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़ नहीं पाए हैं। वजह एक ही है कि संयुक्त किसान मोर्चा को लेकर आम किसानों व बागवानों में जो समझ पनपी है वह यह है कि यह संगठन तीनों विचारधाराओं का जमघट है। ऐसे में अभी संयुक्त किसान मोर्चा में वह भरोसा कायम नहीं हो पाया है जिससे लगे कि वह तमाम किसानों व बागवानों की आवाज को बुलंद कर पाएगा।
ऐसे में राकेश टिकैट के भारतीय किसान संघ से कुछ उम्मीद बढ़ी है। इसकी वजह एक तो यह है कि भारतीय किसान संघ का आयाम राष्ट्रीय स्तर का है और अब किसानों व बागवानों को लगता है कि उनकी आवाज अब राजनीति दलों के नेताओं के जरिए नहीं बल्कि किसान नेताओं के जरिए जो राजनीतिक विचारधारा से नहीं जुड़े हैं, राष्ट्रीय स्तर तक बुलंद हो सकेगी।
यही वजह रही कि राजधानी में टिकैत के चारों ओर विभिन्न किसान नेताओं का जमावड़ा लग गया। इसकी आंच राजनीतिक दलों ही नहीं प्रदेश की जयराम सरकार तक भी पहुंची। सरकार ने अपने दो मंत्रियों को टिकैत के खिलाफ मैदान में उतारने की कोशिश की लेकिन उन्हें अभी ज्यादा जमीन नहीं मिली है।
कांग्रेस के विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह को 24 घंटों के भीतर टिकैत के खिलाफ की गई टिप्पणियों से पीछे मुड़ना पड़ा है। कांग्रेस को मालूम है कि किसानों व बागवानों का आंदोलन अगर प्रदेश में शुरू हो गया तो भाजपा की राजनीतिक जमीन खिसकाने में कोई ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। हालांकि जब विक्रमादित्य सिंह ने यह टिप्पणियां की तो कुछ लोगों को लगा कि कहीं उन्होंने ओकओवर( मुख्यमंत्री के सरकारी आवास) से सांठगांठ तो नहीं कर ली । लेकिन अभी पार्टी का मानना है कि ऐसा नहीं है। पार्टी नेता लगातार नतर बनाए हुए हैं।
अब प्रदेश में भारतीय किसान संघ की तरह ही बड़ा संगठन खड़ा करने की ओर से किसान व बागवान नेताओं का रुझान बढ़ने लगा है। बेशक ये किसान व बागवान नेता किसी भी दल से जुड़े हैं लेकिन इन सबको मालूम है कि एक बार राजनीतिक हित साध लेने के बाद ये अपने किसान नेताओ की भी नहीं सुनते और किसानों व बागवानों के मसले हाशिए पर चले जाते है। अगर किसानों व बागवानों के हाथ में ताकत रहेगी तो वोट की चोट से सबको सबको सिखाया जा सकता है। संभवत: अब हिमाचल भी इस दिशा में आगे बढने लगेगा। टिकैत के हिमाचल दौरे के बाद तो इसी तरह के संकेत मिलने लगे है। इस बीच प्रदेश में संयुक्त किसान मोर्चा किसानों व बागवानों के मसलों को लेकर मसौदा तैयार करने में लगा है। समझा जा सकता है कि किसानों व बागवानों की लामबंदी का कोई रास्ता जरूर निकल पाएगा।
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