शिमला। सीबीआइ ने ढाइ सौ करोड़ रुपए के छात्रवृति घोटाले में शिक्षा निदेशायल में तैनात रही महिला सहायक निदेशक,पांच ग्रेड 1 और 2 अधीक्षकों समेत 12 लोगों के खिलाफ राजधानी में सीबीआइ अदालत में ओरोपपत्र दाखिल कर दिए है। सीबीआइ ने आज स्पेशल जज सीबीआइ शरद कुमार लगवाल की अदालत में ये आरोप पत्र दाखिल किया। कोरोना विषाणु की वजह से इन दिनों अदालतें बंद है, ऐसे में सीबीआइ ने ये आरोपपत्र उनके घर लगी अदालत में दायर किया।
सीबीआइ की ओर से दाखिल की गई में इस घोटाले का प्रमुख सूत्रधार ग्रेड2 अधीक्षक अरविंद राजटा,तत्कालीन डीडीओ और सहायक निदेशक माला मेहता और तत्कालीन ग्रेड 1 अधीक्षक श्रीराम शर्मा,सुरेंद्र मोहन कंवर,अशोक कंवर और वीरेंद्र कुमार शामिल है। इनके पास अलग अलग समय पर डीडीओ की शक्तियां भी रही है।ये सभी कर्मचारी पैसा जारी नहीं कर सकते थे। आरोपपत्र के मुताबिक इनके पास पैसा जारी करने की शक्तियां नहीं थी वह अन्य आला अधिकारियों के पास थी।
ये सभी प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी व कर्मचारी है।सीबीआइ ने इनके अलावा केसी ग्रुप आफ इंस्टीटयूशंस पंडोगा ,उना की तत्कालीन कैंपस निदेशक सरोज शर्मा,इसी संस्थान में कैंपस निदेशक रहे बीएस संधू ,इसी संस्थान के वाइस चैयरमेन हितेश गांधी, इस संस्थान के मालिक प्रेम पाल गांधी,इसी संस्थान की तत्कालीन कार्यकारी प्राधानाचार्य किरण चौधरी और सेंट्रल बैंक आफ इंडिया की नवांशहर इकाई के मुख्य कैशियर सुरेंद्र पाल सिंह के खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल किया है।सीबीआइ ने अभी एक ही संस्थान केसी ग्रुप आफ इंस्टीटयूशंस पंडोगा,उना की ओर से हड़पी छात्रवृति को लेकर जांच की है। सीबीआइ सूत्रों के मुताबिक
इस अकेले संस्थान के कर्ताधार्ताओं ने 13 करोड़ से ज्यादा की छात्रवृति की रकम हड़प ली है। इस संस्थान का एक कैंपस नवांशहर पंजाब में भी है।वहां के मामले में जांच चल रही है।
अभी दर्जनों निजी संस्थान है जिनकी सीबीअाइ जांच कर रही है।
प्रदेश की जयराम सरकार की ओर से इस मामले की सीबीआइ जांच कराने के आग्रह के बाद सीबीआइ ने इस करोड़ों रुपए के घोटाले में 7 मई 2019 में मामला दर्ज किया था।
इस पहले सीबीआइ ने सरकार से प्रदेश पुलिस में मामला दर्ज करने को कहा था। इस पर थाना छोटा शिमला में मामले दर्ज किए गए थे। बाद में इन मामलों को सीबीआइ ने अपने अधीन ले लिया।
याद रहे जयराम सरकार ने इस घोटाले की विभाग के अधिकारी सक प्रारंभिक जांच कराई थी। जिसमें पता चला था कि ये छोटा मोटा घोटाला नहीं है व इसमें राज्य से बाहर के भी संस्थान जुड़े है, इसलिए इसकी जांच केंद्रीय एजेंसी से होनी चाहिए। इस बावत जयराम मंत्रिमंडल ने सीबीआइ जांच की सिफारिश की थी।
इस मामलें सीबीआइ के सामने सबसे बड़ी चुनौती हड़पी गई छात्रवृति की रकम को वापस सरकार के खाते तक पहुंचाना है।
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