हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय, यदि इस शैक्षणिक संस्थान को हम शिक्षा का केंद्र न कहकर राजनीतिक पृष्ठभूमि का केंद्र कहें तो काफी हद तक सही होगा । इस विश्वविद्यालय की स्थापना साल 2009 में हुई थी और आज तक इसका इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए किया जा रहा है। यही वजह है कि लगभग सात साल गुजरने के बाद भी विश्वविद्यालय के लिए स्थायी परिसर नहीं बन पाया है।
लेकिन राजनीति इस संस्थान का सिर्फ एक पहलू भर है, जो जानता के सामने है, और ये सब कुछ बयाँ नहीं करता ।इस संस्थान के और भी बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान नहीं दिया जाता ।सवाल है कि क्या कोई विश्वविद्यालय छात्रों और शिक्षकों की अनदेखी कर सफलतापूर्वक चल सकता है? यहां पर पढ़ने वाले छात्रों को इस अनदेखी का सबसे ज्यादा खामियाज़ा भुगतना पढ़ रहा है।
इतने बड़े शैक्षणिक संस्थान में यदि कुछ मूलभूत सुविधाओं को छोड़ दिया जाए तो ज्यादा कुछ नहीं है।I वजह है इसका अस्थायी परिसर, जो की राजकीय महाविद्यालय शाहपुर में कार्य कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा कॉलेज के इस भवन को लीज़ पर लिया गया है। जो भवन महाविद्यालय के लिए बनाया गया था ,उसमें अब विश्वविद्यालय चल रहा होंं तो परिस्थितियो का अंंदाज़ा लगाना कोई कठिन काम नहीं होगा।
जगह की कमी के चलते पठन और पाठन प्रक्रिया में दिक्कतों से दो चार होना रोजमर्रा की बात है। इसका सीधा असर यहां पर शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों पर पड़ रहा है। पृथ्वी विज्ञान एवं पर्यावरण विज्ञान स्कूल में डी.एन.ए. से संबंधित मशीन है जिसकी कीमत तकरीबन 75 लाख है लेकिन जगह की कमी के चलते इसको प्रयोग में नहीं लाया जा सका है। हिंदी और संस्कृत विभाग के छात्रों का कहना है कि उन्हें तो कक्षाओं के लिए भी ढ़ग से जगह नहीं मिल पाती है और कई बार तो विश्वविद्यालय के प्रांगण में कक्षाएं लगानी पढ़ती है।
एक और ऐसा मुद्दा है जिस पर पहले ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता था। यह है राजकीय महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों का हित। इनकी कक्षाएं तो छात्रावास के लिए बने भवन में चल रहीं हैं। पिछले साल यानि की 2016 में यहां पर शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों का गुस्सा फूट गया और इन्होंने भी अपने कॉलेज के भवन को खाली करवाने के लिए आंदोलन की राह पकड़ ली । लेकिन इनका यह प्रदर्शन कुछ रंग नहीं ला पाया। साल 2017 शुरू हो गया है लेकिन विश्वविद्यालय के स्थायी परिसर बनाए जाने की कोई सुगबुगाहट नहींं सुनाई दे रही है और ना ही दिख रही है।
इस महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की बेबसी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि छात्रावास के लिए भवन में 1500 के करीब छात्र शिक्षा ले रहे हैं। महाविद्यालय में कार्यरत कर्मचारियों के मुताबिक छात्रावस का भवन 100-150 छात्रों के रहने के लिए बना था। यही वजह है कि यहां पर पढ़ने वाले छात्रों के लिए पुस्तकालय और प्रयोगशाला जैसी सुविधाएं भी नहीं हैं ।
यही नहीं जो छात्र केन्द्रीय विश्विद्यालय से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं उनकी हालत भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है । विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए 20 के लगभग कोर्स शुरू किए गए हैं, और विषयों की भी भरमार है। लेकिन क्लास रूम्स की कमी की वजह से छात्र इन विषयों का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं । जगह कम होने की वजह से कक्षाएं दो सत्रों में चल रहीं हैं, जिसकी वजह से छात्र पुस्तकालय जैसी सुविधा का लाभ भी ठीक ढंग से नहीं उठा पा रहे हैं। सुबह के सत्र में आने वाले छात्रों को कैंपस में शाम तक रुकने की अनुमति नहीं है।
लेखक: सुरजीत, छात्र, जनसंचार और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय
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