शिमला। हिंदी साहित्य में अपनी कृति रेत समाधि के लिए अंतरराष्ट्री य बुकर पुरस्कार हासिल करने वाली लेखिका गीताजंलि श्री ने कहा कि वह नहीं चाहती कि उनके लेखन को महिला खेमे के लेखन में डाल दिया जाए।
उन्होंने कहा कि लेखक, लेखक होता है। वह पुरूष व महिला नहीं होता है। हालांकि महिलाओं को महिला लेखक कहा जाता है जबकि पुरूष लेखक तो कहा ही नहीं जाता मान ही लिया जाता है कि लेखक माने पुरुष लेखक । अब तो अनुवाद लेखन भी आग गया है। ऐसे में लेखकों को अगल अलग कर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस तरह अलग कर देना लेखकों के साथ अन्याय है। उन्होंंने कहा कि खासकर उन महिला लेखकों के साथ अन्याय होता है जिन्होंने सिर्फ महिलाओं की बात को उठाने का ठेका नहीं ले रखा है।
गीताजंलि श्री राजधानी शिमला में आयोजित अंतरराष्ट्री य साहित्य उत्संव उन्मेश अभिव्यक्ति का उत्सग के तीसरे व आखिरी दिन भारतीय भाषाओं में महिलाओं का लेखन विषय पर आयोजित चर्चा के दौरान बोल रही थी। उनके साथ में मृदुला गर्ग, जयश्री महंता और ममंग दाई ने भी शिरक्त की
गीताजंलि श्री ने कहा कि वह साहित्य के क्षेत्र से आती है ऐसे में उनकी पहचान साहित्यंकार के तौर पर है।
उन्होंने कहा मैत्रेयी पुष्पा् है जो महिला लेखन करती है । इससे कोई परेशनी नहीं है। यह उनका चुनाव है और उन्होंने इस मुहिम को आगे बढाने का बीडा उठा रखा है। जबकि कृष्णा सोबती व मृदुला गर्ग जैसी लेखिकाएं यह सोच कर नहीं लिखती कि उन्हें महिला कि किसी खास संवेदना को तव्जजों देना है।संवेदनाएं हममे तरह-तरह से आती है और तरह तरह से मुखर होकर अभिव्यमक्ति पाती है।
ये लेखक शायद वो लेखक है जो शायद इंसानों के बारे में लिखते है। उन्होंने कहा कि उन्हें गलत न समझा जाए ।वह मैत्रेयी जी को नीचे नहीं रख रही है वह बडी लेखक वह अपना काम बाखूबी कर रही है। वह अपनी पहचान को अलग तरह से बरतती है जबकि मैं कृष्णा व मृदुला के पीछे चलती हूं व अपनी पहचान को दूसरी तरह से बरतती हूं।
उन्होंने कहा कि मै नहीं चाहती हूं कि मेरे लेखन को महिला लेखन के खेमे में डाल दिया जाए। मै तरह- तरह का लेखन करती हूं और संवेदना मेरे में सिर्फ महिलाओं के प्रति नहीं है औरों के प्रति भी है।
गीताजंलि श्री ने कहा कि कुछ दिनों तक हिंदुस्तान में जब मेरा नाम लिया जाएगा तो बुकर के साथ मेरा नाम जोडा जाएगा। यह कुछ दिनों के लिए ही होगा। मै नहीं सोचती कि इस तरह की गर्मागर्म खबर बहुत दिनों तक रहती है। खासकर साहित्य में तो बिलकुल नहीं।
उन्होंने कहा कि वह विनम्रता से कह रही है या शायद गुस्सें के साथ कह रही हूं कि पुरस्कार आपको एक पहचान देता है। पुरस्कार कोई एक पल होता है जो बहुत से संयोगों , मेरी परंपरा, मेरे आसपास के लोग और न जाने क्या- क्या मिलकर मुझे इसे लायक बनाता है कि मैं एक कृति तैयार करूं।
उन्होंने कहा कि कोइ्र भी पुस्कार आता है बुकर हो या कोई और । वह एक टार्च है । वह रोशनी फेंकती है। इतेफाक से इस पल मेरी कृति पर उस टार्च की रोशनी गिरी है। लेकिन मेरी कृति किसी बंजर जमीन पर नहीं उगी है। वह जिस जमीन पर उगी है वहां रोशनी पडती है। उस जमीन पर मैं अकेली नहीं हूं वहां मेंरे आसपास भी बहुत सी ऊपजाऊ जमीन है जहां पर बहुत सी कृतियां है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यकीन मानिए टार्च की तरफ देखना बंद कर दीजिए जहां रोशनी पडी है वहां देखिए
। इस उत्सव का आयोजन केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी ने राज्य भाषा,कला और संस्कृति विभाग के सहयोग से किया था।
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