जीशानुल हक़
बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने धमाकेदार जीत के साथ सभी को चौंका दिया था। अब यहां पर पंचायत चुनावों की आहट सुनाई देने लग गई है। वहीं कुछ दिनों से यहां पर कानून व्यवस्था कुछ लचर दिख रही है। अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि, एक ज़माने में जंगलराज के नाम से मशहूर बिहार को भयमुक्त बिहार का तमगा दिलाने में सफल रहे नीतीश कुमार क्या इस रिकार्ड को आगे भी कामयाब रख पाएंगे? क्या उन्होंने जो वादे किए हैं उन्हें पूरा कर पाएंगे?
ये सारे सवाल आज इसलिए पैदा हुए हैं क्योंकि आजकल बिहार में अपराध का ग्राफ बहुत तेजी से बढा है। सुशासन बाबु कहे जाने वाले नीतीश कुमार आजकल कानून व्यवस्था पर खुलकर बात करने से कतराते नज़र आ रहे हैं। दरभंगा में दोनों इंजीनियरों की हत्या हो, बमबारी हो या 4 जनवरी को पटना के शिक्षक मधुसुदन सिंह की हत्या हो। इस तरह की बेखौफ घटनाएँ आम जनता को लालू-राबडी के उन 15 वर्षों की याद दिलाती हैं जब अपराध का ग्राफ यहां पर अपने सबसे ऊंचे पायदान पर था और अपराधी बेखौफ होकर घूमते थे।
सुशील मोदी का कहना कि “नीतीश भले ही मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठे हों पर राज लालू यादव कर रहे हैं,” सही साबित होता प्रतीत हो रहा है। मार्च से बिहार में पंचायत चुनाव शुरु होने वाले हैं। यह नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी साबित होने जा रही है क्योंकि इस चुनाव में देखना यह है कि आपराधिक घटनाओं को वह किस हद तक संभाल पाते हैं। भागलपुर के कहलगांव में एक निर्माण कंपनी के सुपरवाइजर की गोली मारकर हत्या कर दी गई और इसके अगले दिन एक इंजीनियरिंग के छात्र का अपहरण।
हर घटना के पीछे एक ही कारण था और वह था फिरौती। रंगदारी एक बार फिर से अपना पांव जमाने की कोशिश कर रही है। गत रविवार गोपालगंज के सासामुसा में माले नेता योगिंदर शर्मा के भाई को कुछ अज्ञात लोगों ने गोलियों से छलनी कर दिया। उसके अगले ही दिन कई हथियार बरामद किए गए। भले ही नीतीश कुमार अफसरों को फटकार लगा रहें हों पर अपराध नियंत्रण के लिए रखी गई बैठक में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का उपस्थित न होना भी एक अलग ही नज़रिए को पेश करता है। अब देखना यह है कि अपनी छवि को बचाने के लिए नीतीश कुमार क्या करते हैं। क्या वो कुछ कड़े फैसले ले सकते हैं, जैसे- पूर्णरुप से शराबबंदी और प्रदेश में पनप रहे माफिया को समय रहते कुचलना।
जीशानुल हक़ बिहार के गोपालगंज में पत्रकार है।
लेखक के ये अपने विचार है।
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