शिमला। इस बार चार लोकसभा सीटों वाले छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश में राष्टÑीय व भावनात्मक मुददों के साथ साथ जमीनी मुददों के बीच राजनीतिक दलों कांग्रेस व भाजपा को जनता का सामना करना पड़ेगा। हालांकि जनता के असल मुद्दों को चुनाव जीत जाने के बाद दफन किया जाता रहा है। पार्टी चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही चुनावों के दौरान बड़े -बड़े वादों की नाव पर चढ़ कर जनता के बीच जाती है और चुनाव जीत जाने के बाद चार साल तक सांसद गायब हो जाते है।इस बार लोग अपने अपने मसलों को लेकर कांग्रेस व भाजपा से हिसाब मांगने को तैयार बैठी है।
उतरी भारत को रोशन करने व रेतीली जमीन में हरियाली लाने वाली भाखड़ा व पौंग बांध जैसी परियोजनाएं सतर के दशक में पूरी हो गई लेकिन विस्थापन का दंश झेल रहे प्रदेश के हजारों परिवारों की आवाज संसद में कम ही गूंजी और जब गूंजी भी तो रस्म अदायगी तक ही सीमित रही। पौंग बांध परियोजना के ही 12 हजार परिवार अभी तक बसे नहीं है। कांगड़ा व हमीरपुर संसदीय हलके में विस्थापितों का यह मसला इस बार भी उभरेगा। पौंग बांध आंदोलन चला रहे निर्दलीय विधायक होशियार सिंह का देहरा विधानसभा हलका हमीरपुर संसदीय हलके में है व अनुराग के करीबी पूर्व विधायक रविंद्र सिंह रवि का उनसे छतीस का आंकड़ा है। सांसद अनुराग भी उन्हें भाव नहीं दे रहे है। वो कहते है कांगड़ा व हमीरपुर संसदीय हलकों से आज तक जितने भी सांसद जीते उनका पौंग बांध विस्थापितों के लिए शून्य योगदान है। जयराम ठाकुर पहले मुख्यमंत्री है जिन्होंने इस मसले पर विस्थापितों की सुनी। जिधर वह इशारा करेंगे वह उस तरफ जाएंगे।
उधर, प्रदेश में कर्मचारी एक बड़ा वर्ग है जो चुनावों को प्रभावित करने की कुव्वत रखता है। कर्मचारियों में न्यू पेंशन स्कीम के तहत 80 हजार के करीब कर्मचारी आंदोलन की राह पर है। विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने अपने दृष्टिपत्र में इन कर्मचारियों की मांगों पर गौर करने का वादा किया था लेकिन सवा साल में भी कुछ कारगर नहीं हुआ है। एनपीएस कर्मचारी संघ के महासचिव नरेश शर्मा कहते है कि अप्रैल के पहले सप्ताह में तय किया जाना है कि चुनावों का बहिष्कार करना है या नोटा पर मुहर लगानी है। कम से कम घोषणापत्रों में उनकी पुरानी पैंशन स्कीम की मांग शामिल होनी ही चाहिए।
कर्मचारियों में आउटसोर्स कर्मचारियों की सबसे बुरी स्थिति है। इनको नीति बनाने का वादा किया था इनके लिए कांग्रेस ने भी कुछ नहीं किया । अब ये भी आंदोलन की राह पर है। इन कर्मचारियों के नेता यशपाल कहते है कि किसको समर्थन देना है इस बावत फैसला होना है। प्रदेश में ये 42 हजार के करीब आउटसोर्स कर्मचारी है और मुनाफा इन्हें रखने वाली कंपनयिां कमा रही रही है। वो इसे घपला भी करार देते है।
प्रदेश में अढाई लाख के करीब परिवार ऐसे है जिनके घरों से कोई न कोई फौज में है या रहा है। एक लाख तीस हजार तो भूतपूर्व सैनिक ही है जबकि एक लाख बीस हजार फौज में सेवारत है। अर्ध सैनिक बलों की तादाद अलग से है। कारगिल के समय ही 52 शहीद हिमाचल के थे। आजादी से लेकर अब जितने भी युद्व हुए है हिमाचल से 12 सौ के करीब शहादतें हुई है। कारगिल के दौरान टाइगर हिल व तोलोलिंग की पहाड़ियों को दुश्मन के कब्जे से मुक्त कराने में अहम भूमिका निभाने वाले ब्रिगेडियर खुशाल सिंह कहते भी है शहीदों परिवारों को सबसे ज्यादा दरकार सम्मान व पहचान की है। इसके लिए कोई ढांचागत तंत्र विकसित नहीं है। शहादत के बाद उनके परिवार कैसे पलते-बढ़ते है,यहां मदद की जरूरत है। प्रदेश के हमीरपुर व कांगड़ा संसदीय हलकों में फौजी परिवार सबसे ज्यादा है।
कांगड़ा में बीते दिनों राहुल गांधी की हुई जनसभा में उन्होंने खास तौर पर फौजियों के मसले को छुआ और एलान कर दिया कि कांग्रेस के गददीनशीं होने पर अर्धसैनिक बलों को भी शहीद का दर्जा दिया जाएगा। पुलवामा हमले में कांगड़ा के जवान तिलक राज शहीद हुए थे। चूंकि मोदी सरकार पुलवामा के बाद पाकिस्तान के इलाकों में आतंकी ठिकानों पर किए हवाई हमलों को राजनीतिक तौर पर भुनाने में लगी थी तो राहुल गांधी ने भी ये दांव चल दिया। यहीं नहीं राजधानी शिमला से कांग्रेस की जनचेतना रैली को शहीद की पत्नी से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया ।
हिमाचल एक अरसे से आरएमपी (रिक्रुटेबल मेल पापुलेशन) में बढ़ोतरी की मांग कर रहे है। लेकिन सांसद इस मांग को भी नहीं मनवा पाए है। सबसे ज्यादा परमवीर चक्र अगर किसी प्रदेश के जाबांजों को मिले है तो वो हिमाचल है। इसके अलावा देश की रक्षा के मामले में प्रदेश के जाबांजों का योगदान बहुत ज्यादा है। चूंकि प्रदेश में नौकरियां नहीं है तो अगर आरएमपी का कोटा बढ़ जाता तो बेरोजगारी का आंकड़ा जो 849हजार 981 तक पहुंच गया है उसमें कुछ कमी आ जाती।
प्रदेश में 12 लाख के करीब जोते है। इनमें से आठ लाख 42 हजार किसान परिवारों के पास दो हैक्टेयर से कम जमीन है। कुल खेती योग्य जमीन का 20 फीसद भाग ही सिंचाई योग्य है बाकी अस्सी फीसद खेती योग्य जमीन बारिश पर निर्भर है। किसानी का यह तबका आजादी के बाद से ही हाशिए पर धकेला जाता रहा है। जो योजनाएं आई भी वह किसानों के पक्ष में कम कारोबारियों के पक्ष में ज्यादा रही है। ये सिलसिला अभी भी जारी है। किसानों को अपने पक्ष में करने की मुहिम में मोदी सरकार ने फरवरी महीने में एक दांव जरूर चला ।
उन्होंने प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना चलाई। इसके तहत 10 मार्च तक प्रदेश के 6 लाख 95 हजार 246 किसान अपने फार्म भर चुके थे । इनमें से चार लाख 37 हजार 190 किसानों के फार्म सही पाए गए है और केंद्र सरकर से पैसा मांग लिया है। इन्हीं में से 3 लाख 69 हजार 65 0 किसानों के खाते में दो दो हजार रुपए आ चुके है। छोटे किसानों में इसका असर नजर आ रहाहै। हालांकि इसकी काट में राहुल गांधी न्यूनतम आय के अधिकार का वादा करते फिर रहे है। कांग्रेस राहुल गांधी के वादे को किसानों तक कितना पहुंचा पाती है बहुत कुछ इस पर निर्भर रहने वाला है। किसानों की असल मुश्किल सतत आय में बढ़ोतरी की ही है जिस पर कोई बड़ा काम नहीं हो रहा है।
प्रदेश की चार सीटों में से शिमला संसदीय सीट आरक्षति है। दलितों पर हुए अत्याचारों को लेकर दलित इस बार भाजपा व कांग्रेस दोनों से नाराज है। खास कर 2018 में सिरमौर के शिलाई हलके में आरटीआई कार्यकर्ता व दलित नेता केदार सिंह जिंदान की नृशंस हत्या के बाद जिस तरह की खामोशी कांग्रेस व भाजपा ने अपनाई उससे दलित सहमें हुए है। इसके बाद भी दलितों से भेदभाव व उनके उत्पीड़न के मामले सामने आते रहे है।
प्रदेश में 25.6 फीसद दलित आबादी है जो आज भी सामाजिक बुराई छुआछूत और भेदभाव से से जूझ रही है। इसके अलावा गरीबी की चोट अलग से है सेंटर फार माउंटेन दलित मूवमेंट के सुखदेव विश्वप्रेमी कहते भी है कि स्कूलों से लेकर देवस्थानों तक दलितों से भेदभाव आज भी जारी है। लेकिन राजनीतिक स्तर पर ये मसले उभरते ही नहीं। दलित संगठनों अपना अलग घोषणा पत्र तैयार करने में लगे है जो दोनों दलों को मुश्किल में डाल सकता है।
भूमि सुधारों के तहत सीलिंग एक्ट 1972 अस्तित्व में आया था। राज परिवारों व बड़े जमींदारों से सरकार के पास तीन लाख एकड़ जमीन वापस आई । इस एक्ट के मुताबिक एक परिवार के पास अधिकतम जमीन तीन सौ बीघा हो सकती थी। वापस आई जमीन को भूमिहीनों को बांटना था। लेकिन बंटी केवल छह हजार एकड़ ही। कहा जाता है कि ये जमीन कागजों में ही वापस आई । ये अभी भी जमींदारों के पास ही है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में आज भी दो लाख 27 हजार परिवार भूमिहीन है और इनमें से अस्सी फीसद दलित परिवार है। लोकसभा व विधानसभा के हर चुनाव से पहले कांग्रेस व भाजपा की सरकारों ने भूमिहीनों को जमीन देने के वादे तो किए पर गद्दी पर नशीं हो जाने के बाद ज्यादा कुछ नहीं हुआ। राज्य में 13.25 फीसद आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की है व इस आबादी का कांगड़ा व हमीरपुर हलकों में अच्छा दखल है जबकि 5.71 फीसद के करीब आबादी अनुसूचित जनजाति की है।
बाकी 50.72 फीसद आबादी स्वर्णो की है और इनमें भी 32.72 फीसद राजपूत है। ब्राहमणों की आबादी 18 फीसद के करीब है।
2014 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश की चारों सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया। यह कब्जा तब जमाया जब प्रदेश में कांगेस पार्टी के दिग्गज वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे। मोदी लहर ने इस तरह झाड़ू चलाया कि मंडी लोकसभा सीट से वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह तक चुनाव हार गई और भाजपा के रामस्वरूप शर्मा जीत गए। भाजपा के रामस्वरूप शर्मा को 3 लाख 62 हजार824 मत मिले जबकि वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को 3 लाख 22 हजार 968 मत ही मिले व वह चुनाव हार गई । यह कांग्रेस पार्टी की बहुत बड़ी हार थी । रामस्वरूप शर्मा को 49.94 फीसद और प्रतिभा सिंह को 44.46 फीसद मत मिले थे।
1992 से भाजपा के कब्जे में हमीरपुर संसदीय हलके में इस बार कड़ा मुकाबला होने की संभवना है। पिछल्ले बार पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर इस सीट से 53.61 फीसद मिले थे जबकि कांग्रेस पार्टी के राजेंद्र राणा को 41.83 फीसद वोट मिले थे । अनुराग को 4 लाख48 हजार 35 मत मिले थे जबकि राणा को 3 लाख 49 हजार 632 मत मिले थे। अनुराग इस सीट पर लगातार तीन बार जीत चुके है।
कागड़ा संसदीय हलके से भाजपा के दिग्गज नेता शांता कुमार ने बड़ी जीत हासिल की थी उन्होंने 4 लाख 56 हजार 163 मत लिए । यह 57.03 फीसद थे जबकि कांग्रेस पार्टी के चंदर कुमार को 2 लाख 86 हजार 91 ही मत मिले थे। उन्हें 35 .76 फीसद मत मिले थे। जबकि शिमला रिजर्व सीट से भाजपा के वीरेंद्र कश्यप ने जीत हासिल की थी। वह 2009 में सांसद का चुनाव जीते थे। उन्हें 3 लाख 85 हजार 953 मत मिले जबकि कांग्रेस के मोहन लाल ब्राक्टा को 3 लाख एक हजार 786 मतों से ही संतोष करना पड़ा था। दिलचस्प ये था कि इन चुनावों में कांग्रेस के चारों प्रत्याशी तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीबी थे व चारों ही हार गए थे।
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