शिमला। जिस तरह से आिर्बटेटरवअदालतोंकेआदेश फैसले सरकार के खिलाफ आ रहे हैं उससे देश के बडे उद्योगपतियों अदाणी व टाटा समूह की कंपनियों समेत प्रदेेेेश में पन बिजली परियोजनाएं लगाने आई दर्जनों निजी कंपनियों का अपफ्रंट मनी लौटाते -लौटाते आर्थिक बदहाली में चल रही सुक्खू सरकार का खजाना खाली हो जाएगा। लेकिन इस तरह की स्थिति पैदा क्यों हुई इस बावत किसी की भी जवाबदेही तय नहीं हैं। न नौकरशाहों की और न ही अब तक सत्ता में रहे मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों की।
अब ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर जस्टिस दीपक गुप्ता ने बतौर आर्बिटेटर 260 मेगावाट की यंगथंग पन बिजली परियोजना को लेकर अपना फैसला सुनाते हुए सरकार को इस परियोजना को लगाने वाली कंपनी को अप फ्रंट मनी के 60 करोड रूपए लौटाने के आदेश दिए हैं। साथ ही ब्याज भी लौटाने के आदेेेेश दिए हैं।
यह परियोजना किन्नौर जिला में स्पिति नदी पर स्थापित की जानी थी। लेकिन जिस कंपनी ने इसे लगाना था उसने हाथ पीछे खीच लिए और सरकार ने ठेके के उपबंधों के मुताबिक अपफ्रंट मनी की रकम को जब्त कर लिया। लेकिन कंपनी ने आर्बिट्रेटर के सामने मुकदमा दायर कर दिया और आर्बिटेटर ने सरकार को 60 करोड रूप्ए लौटाने के आदेेेेश दिए हैं।
इसी तरह सैली पन बिजली परियोजना मामले में भीआर्बिटेटर ने सरकार को अप फ्रंट मनी को लौटाने आदेश दिए हैं। आर्थिक बदहाली सेजूझ रही और कर्ज लेकर अपना हर काम निकाल रही सरकार के सामने सबसे बडी मुष्किल यह है कि उसे आर्बिट्रेटर के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने के साथ ही यह रकम भी जमा करानी होंगी।
उहल पन बिजली परियोजना के मामले में नौ करोड के अप फ्रंट मनी की जगह सरकार को 36 करोड रूपए उच्च न्यायालय में जमा कराने पडे हैं।यह सब क्यों हुआ , इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं इस बावत कहीं कोई जांच नहीं है। न नौकरशाहों जिम्मेदारी तय और न ही नेताओं की । इन सब मसलों पर पक्ष प्रतिपक्ष सब मौन हैं।
इससे पहले जयराम सरकारमें जंगी थोपन परियोजना मामले में अदाणी पावर को 280 करोड रूपए,चंबा की डुग्गर पन बिजली परियोजना के मामले में टाटा पावर व सिंगापुर का स्टेटका्रफट कंपनी को 48 करोड लौटाने के आदेश हो चुके है व दर्जन भर से ज्यादा मामले आर्बिट्रेटर के पास लंबित हैं। ऐसे में सरकार का खजाना कैसे बचेगा इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता हैं। सबसे हैरानी वाली बातयह है कि इन मसलों पर न तो मंत्रिमंडल में कोई समीक्षा होती है और न ही कोई उप समिति बनती हैं। न ही विधानसभा की समितियों में ये मामले जाते हैं।
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