शिमला।। चीन के दबाव से संभावित खतरे की जद में आई हिमाचल की सेब आर्थिकी को लेकर आगाह करते हुए देश के नामी कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार को इस बावत केंद्र सरकार पर लगातार दबाव बनाए रखना होगा। उन्होनें कहा कि 17 देशों की रीजनल कंप्रेंहेंसिव इक्नामिक पार्टनरशिप की आपसी व्यापार को लेकर चल रही वार्ताओं में 92 फीसद मदों को कर मुक्त करने के लिए दबाव डाल रहा हैं। भारत इनमें से 80 फीसद पर तैयार हो गया हैं। अगर 80 फीसद मदों को भी करमुक्त मदों की श्रेणी में ला दिया गया तो इसमें सेब भी शामिल हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश व देश के अन्य राज्य जहां पर सेब की आर्थिकी हैं,तबाह हो जाएगी । वह यहां प्रदेश फल व सब्जी उत्पादक संघ की ओर से आयोजिक संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे।
उन्होनें कहा कि केंद्र व राज्य में दोनों जगहों भाजपा की सरकारें हैंं, ऐसे में प्रदेश सरकार को मोदी सरकार पर लगातार दबाव बनाए रखना होगा कि सेब से कोई छेड़छाड़ न हो। सेब कर मुक्त मदों की सूची में न जा पाएं। 17 देशों के प्रतिनिधियों की व्यापार को चल रहे वार्ताओं के दौर की आखिरी बैठक हैदराबाद में हुई थी। सब कुछ अंदरखाते चल रहा हैं। बाहर कुछ नहीं आ रहा हैं। उन्होनें कहा कि व्यापार में चीन की नीति इतनी आक्रामक है कि अमेरिका में चीन का सेब बिक रहा हैं और अमेरिका का सेब वाशिगंटन भारत की मंडियों में पहुंच रहा हैं। वाशिगंटन में 106
बीमारियां हैं। जिनमें से 90 फीसद बीमारियां देश में थी ही नहीं। अगर भारत ऐसा सेब अमेरिका भेजे तो वह लेने से इंकार कर देता हैं। उन्होंने कहा कि किन्नौर और कोटगढ़ का सेब बाहर के सेब से कहीं अच्छा हैं। लेकिन विश्व व्यापार संघ के बाद अब नया खतरा मंडरा रहा हैं।
उन्होनें प्रदेश में सब्जी उत्पादकों को मटर ,टमाटर ,गोभी और आलू की फसलों को भांवातर अदायगी योजना के तहत लाने की मांग की। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने यह योजना शुरू की थी। उसके बाद अब हरियाणा सरकार भी इसे शुरू करने जा रही हैं।
प्रदेश सरकार को भी ऐसा करना चाहिए। इस योजना के तहत किसानों को न्यूनतम समर्थन के आधार पर अपनी फसल की कीमत मिलनी चाहिए। अगर बाजार में ये कीमत कम मिलती हैं तो इसकी भरपाई सरकार को करनी चाहिए। मिसाल के तौर पर किसान को बाजार मे आलू की कीमत 2 रुपए मिल रही हैं। लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य 15 रुपए निर्धारित हुआ हैं तो किसान को 13 रुपए सरकार की ओर से अदा किए जाने चाहिए। मध्यप्रदेश में ये अदायगीदिनभर होने वाली ट्रेडिंग के औसत के आधार पर की जा रही हैं। यह समर्थन मूल्य के आधर पर होनी चाहिए व समर्थन मूल्य निर्धारित करने के लिए सरकार को किसी इकाई का गठन करना चाहिए।
देश में किसानों की आत्महत्या लगातार बढ़ रही हैं। उन्होने कहा कि यह सोच गलत है कि पैदावार बढ़ने या सिंचाई सुविधा ज्यादा होने से आत्महत्याएं रुक जाएगी। असल मसला किसानों की आय बढ़ने का हैं। महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र जहां 18 फीसद इलाका सिंचित हैं वहां भी आत्महत्याएं हो रही हैं और पंजाब जहां 98फीसद क्षेत्र सिंचित हैं और धान,चावल और गैंहू की औसत पैदावार भी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं,यहां भी आत्महत्याएं हो रही हैं। 2000 से 2017 तक पंजाब में 16 हजार आत्महत्याएं हो चुकी हैं। देश में 41 मिनट बाद एक किसान आत्महत्या कर रहा हैं।
उन्होनें कहा कि जब देश के 1.3 फीसद आबादी जो कर्मचारियों और पैंशनरों की हैं उनके लिए वेतन आयोग हो सकता हैं तो 52 फीसद किसान आबादी के लिए किसान आय आयोग क्यों नहीं होना चाहिए। 7वें वेतन आयोग के देशभर में लागू होने पर 4 लाख 80 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। अगर इतना पैसा 52 फीसद किसान आबादी के पास पहुंच जाए तो आर्थिकी की रफतार 20 फीसद तक पहुंच जाएगी। लेकिन सरकारें एक फीसद आबादी को खुश करने में लगी हुई हैं।
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