शिमला। वाटर सेस के नाम पर बेशक प्रदेश की सुक्खू सरकार आय जुटाने के काम में जुटी हो लेकिन दूसरी ओर निजी पावर कंपनियों ने अपफ्रंट मनी पर ब्याज के सहारे प्रदेश के खजाने से कमाई का रास्ता निकाल लिया हैं। इसमें अदाणी समूह की अदाणी पावर कंपनी के बाद ऊहल पावर कंपनी भी शामिल हो गई हैं।यहां यह गौरतलब है कि अगर कोई कंपनी परियोजना शुरू नहं कर पाती तो अप फ्रंट मनी जब्त हो जाता हैं ।
इस कंपनी के पास ऊहल परियोजना का ठेका कई सालों तक रहा लेकिन बाद में तय समय से पहले ही इस अधिकारियों ने इस आवंटन को रदद कर दिया। अधिकारियों ने यह ठेका क्यों रदद किया इस बावत आज तक कोई जांच नहीं हुई । कंपनी अदालत में चली गई और सरकार को नौ करोड़ रुपए से ज्यादा का अप फ्रंट लौटाने का आदेश दे दिया । लेकिन इस अप फ्रंट मनी को न तो पूर्व वीरभद्र सिंह सरकार व न ही उसके बाद की तमाम सरकारों ने जमा कराया। बाद में 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस रकम को ब्याज समेत लौटाने के आदेश दे दिए ।
सरकार को प्रदेश के खजाने से जमा 9 करोड़ 10 लाख 26 हजार 559 रुपए की जगह 38 करोड़ 58 लाख 62 हजार 829 रुपए जमा कराने पड़े । लेकिन मामला यही नहीं रुका । अप फ्रंट मनी की रकम लौटाने के मामलों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर सरकार इन मामलों को अदालतों में हारी क्यों हैं। निजी कंपनियों ने सालों तक इन ठेकों को अपने पास रखा। कोई बिजली तैयार नहीं हुई और प्रदेश का नुकसान हुआ । क्या सरकारों में शामिल नेताओं व नौकरशाहों ने कोई खेल खेला व जानबूझ कर खामियां रखी या कानूनी तौर पर ढील रखी गई। अगर यह सब हुआ तो बदले में किसे क्या मिला यह जानना बेहद महत्वपूर्ण हैं।
बहरहाल ,मामला यही नहीं रुका अब अब ऊहल पावर ने प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी है कि उसे जो ब्याज दिया गया है वह नौ करोड़ 10 लाख पर दिया गया हैं जबकि उसे यह ब्याज की रकम 26 करोड़ 8 लाख 89 हजार 107 करोड़ पर मिलना चाहिए था।
प्रदेश सरकार व ऊहल पावर के बीच मंडी के जोगेंद्र नगर में 100 मेगावाट के ऊहल -111 परियोजना के कार्यान्वयन के लिए 10 फरवरी 1992 में समझौता ज्ञापन पर दस्तख्त हुए थे व 22 अगस्त 1997 में इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट पर साइन हुए थे। लेकिन कई मंजूरियों के न मिलने पर इस ठेके को पूर्व की धूमल सरकार ने 1 मार्च 2003 को रदद कर दिया । बाद मेंइस मामले को 10 जनवरी 2003 को आर्बिट्रेटर जस्टिस रिटायर आर के महाजन के हवाले कर दिया।
पांच जून 2005 को जस्टिस आर के महाजन ने कंपनी के पक्ष में फैसला दे दिया व अपने फैसले में कहा कि कंपनी को 26 करोड़ 8 लाख 89 हजार 107 रुपए की रकम लौटाई जाए और जिस दिन कंपनी ने दावा किया था यानी 12 मई 2003 से पांच जून 2005 तक इस रकम पर नौ फीसद ब्याज दिया जाए।
बाद में यह मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गया व जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया और सरकार को इस मामले में 38 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम लौटाने पड़ी हैं। लेकिन अब ऊहल कंपनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है कि उसे 26 करोड़ आठ लाख पर 12 मई 2003 से पांच जुन 2005 तक नौ फीसद व जून 2005 से 21 मई 2022 तक 18 फीसद के हिसाब ब्याज मिलना था।मई 2022 तक यह रकम 94 करोड़ के करीब हो जाती थी व अब 2023 शुरू हो गया है तो यह रकम अरब के पार पहुंच गई होगी।
याद रहे अदाणी पावर ने भी इसी तरह ब्याज को 2008 से देने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की हैं। जबकि अदाणी पावर को तो 960 मेगावाट का जंगी थोपन पन बिजली परियोजना दी भी नहीं गई थी। अदाणी पावर ने तो ब्रेकल एनवी जिसे यह ठेका दिया गया था की ओर से जुर्माने समेत अप फ्रंट मनी का 280 करोड़ रुपया जमा कराया था। ब्रेकल ने दावा किया था कि उसने यह रकम अदाणी से उधार ली थी। अदाणी ने यह पैसा ब्रेकल से नहीं मांगा था बल्कि सरकार से मांगा था। पूर्व की जयराम सरकार में न जाने क्या हुआ कि सरकार इस मामले को हाईकोर्ट में हार गई व जस्टिस संदीप शर्मा की अदालत ने फैसला दे रखा है कि सरकार अदाणी को जून 2022 के बाद नौ फीसद ब्याज के साथ इस रकम को लौटा दे। लेकिन अब अदाणी पावर ने यह ब्याज 2008 से मांगी है। अगर सुक्खू सरकार भी इस मामले को हार गई तो यह अरबों रुपयों का मामला हो जाएगा।
बहरहाल अब ऊहल परियोजना के मामले में विशेष सचिव पावर किरण भड़ाना ने निदेशक ऊर्जा को 20 मार्च को चिटठी लिखी है कि वह इस मामले पर महाधिवक्ता के साथ चर्चा करे।उधर 24मार्च को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विधान सभा के बजट सत्र के दौरान सदन में इस बात पर चिंता जताई है कि कंपनियों ने परियोजनाओं के लगाया भी नहीं और अदालतों के जरिए अप फ्रंट वापस मांग रही हैं।
ऊहल व अदाणी पावर के अलावा डुग्गर व सैली परियोजनाओं में भी अप फ्रंट मनी वापस करने के आदेश आ चुके है व सैली में तो साठ करोड़ रुपए ऊपर की रकम व डुग्गर में भी पचास करोड़ के करीब की रकम जमा कराई जा चुकी हैं। अब देखना यह है कि इस मामले में सुक्खू सरकार कितना संजिदा रुख अपनाती हैं। क्योंकि ऐसा ठेका दस्तावेजों में क्या खामी रखी जाती है कि सरकार मुकदमा हार जाती है और परियोजना भी नहीं लगती। जनता के खजाने को हर दिशा से सेंध लगाई जाती है और कोई जांच तक नहीं करता।
(10)