शिमला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बिलासपुर के लुहणू ग्रांउड में प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के लिए प्रचार का आगाज करेंगे उस दौरान राजधानी में उनके मित्र व प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के अफसर प्रधानमंत्री के करीबी उद्योगपति गौतम अदाणी के 280 करोड़ रुपए लौटाने की फाइलों को दुरुस्त करने का काम कर रहें हैं।प्रधानमंत्री मोदी की रैली बिलासपुर में ये खबर लिखे जाने के तीन घंटे बाद शुरू होने वाली हैं।
देश के टॉप उद्योगपति गौतम अदाणी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के भी करीबी हैं। चूंकि बुधवार 4 अक्तूबर को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में केबिनेट की बैठक होनी हैं।सचिवालय में बड़े बाबूओं ने छोटे बाबूओं को अदाणी को 280 करोड़ लौटाने वाली फाइल दुरुसत करने की हिदायतें दी हैं।
गौतम अदाणी को ये 280 करोड़ लौटाने का मामला बेहद दिलचस्प और प्रदेश के भाजपा व कांग्रेस नेताओं के अलावा नौकरशाहों की बेईमानी का बड़ा सबूत हैं। जिस 280 करोड़ को जब्त कर दिया जाना चाहिए था , उसे न तो पूर्व की धूमल सरकार ने जब्त किया और न ही मौजूदा वीरभद्र सरकार ने जब्त किया। वीरभद्र सरकार ने तो उल्टे 2015 में इस पैसे को लौटाने का फैसला केबिनेट में लेक सबको चौंका दिया था। तब किसी बड़ी डील होन का अंदेशा था।
बहरहाल ,तब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के कई ठिकानों पर छापे मारी हो गई तो ये पैसा वापस होने बच गया। मायने ये कि प्रदेश के खजाने से 280 करोड़ लुटने से बच गए।
ये है मामला—
2003 से 2007 तक सता में रही तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने किन्नौर सिथत 960 मेगावाट के जंगी थोपन पवारी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को हालैंड की एक कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एनवी को आवंटित कर दिया।तब विपक्षी पार्टी भाजपा ने इसमें डील का आरोप लगाया और सरकार के खिलाफ दायर चार्जशीट में इसे बड़ा घोटाला बताया। ब्रेकल को प्रोजेक्ट आवंटित होने के बाद ब्रेकल को अप फ्रंट के 280 करोड़ जमा कराने थे। लेकिन उसने ये पैसा जमा नहीं कराया। इस बीच प्रदेश में सता परिवर्तन हो गया और धूमल सरकार पावर में आ गई।धूमल सरकार ने ब्रेकल को ये पैसा जमा कराने के नोटिस दिए। इसी बीच इस प्रोजेक्ट की बोली लगाने वाली व बोली में दूसरे नंबर पर रहने वाली देश के दूसरे बड़े उद्योगपति अंबाणी की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी तो धूमल सरकार ने ब्रेकल की पृष्ठभूमि व दावों को लेकर विजीलेंस व आयकर जांच बिठा दी।
चूंकि ब्रेकल 280 करोड़ रुपए जमा नहीं करा पा रही थी तो उसने अदाणी की कंपनी ने ब्रेकल की ओर से ये पैसा जमा कराया। सरकारी दस्तावेजों में लिखा है कि ब्रेकल ने अदाणी की कंपनी से कर्ज लेकर ये पैसा सरकारी खजाने में जमा कराया। चूंकि धूमल सरकार ने विजीलेंस व आयकर जांच चला रखी थी तो इन एजेंसियों की रिपोर्ट ब्रेकल के खिलाफ आ गई। बावजूद इन रिपोर्टों के धूमल सरकार ने इस प्रोजेक्ट को ब्रेकल के पास ही रहने दिया। ये अपने आप रहस्यमय है कि धूमल ने ऐसा क्यों किया ।कहा तो ये जाता है कि ये गुजरात के तत्कालीन सीएम व मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आग्रह पर किया गया था। तब धूमल और मोदी की दोस्ती भाजपा के गलियारों में बेहद चर्चित थी।
बहरहाल ,धूमल सरकार के इस फैसले के खिलाफ रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर व हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2009 में ब्रेकल को आवंटित किए आवंटन को रदद कर दिया।
ऐसे में धूमल सरकार को तुरंत अप फ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए जब्त कर देने चाहिए थे। धूमल सरकार को इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट की शर्तों को पालन करना था। लेकिन धूमल सरकार ने ऐसा नहीं किया। वो चुप बैठी रही। चुप क्यों बैठी रही ये रहस्य बना हुआ हैं।
इस बीच रिलायंस व ब्रेकल ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेशों को चुनौती दे दी।
2015 में मौजूदा वीरभद्र सिंह सरकार ने अजीब फैसला लिया व 960 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट को 2006 की दरों पर रिलायंस को दे दिया।शर्त ये रखी कि रिलायंस को सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेनी होगी। ब्रेकल ने पहले ही 2014 में अपनी याचिका वापस ले ली थी। रिलायंस ने इस प्रोजेक्ट को लेने की हामी भर दी व सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले ली। वीरभद्र सिंह सरकार को इस समय भी ये 280 करोड़ रुपए जब्त कर देने चाहिए थे । लेकिन ऐसा नहीं किया गया। ये रहस्य बना हुआ कि आखिर वीरभद्र सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया।
अब आज मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिलासपुर में हैं तो सचिवालय के बाबूओं ने छोटे बाबूओं को अदाणी की कंपनी के 280 करोड़ रुपए लौटाने की फाइलों को दुरुस्त करने के निर्देश दिए। समझा जा रहा है कि कल बुधवार चार अक्तूबर को होने वाली केबिनेट में इस मसले पर कोई मंथन होना हैं। क्या मंथन होगा इसका इंतजार हैं। विवरण का इंतजार हैं।
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