शिमला।2015 में पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार में 960 मेगावाट के जंगी थोपन बिजली परियोजना को अंबाणी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को देने और अप फ्रंट मनी के तौर पर रिलायंस से मिलनी वाली रकम में से अदाणी को 280 करोड़ की रकम लौटाने का फैसला सुक्खू सरकार की गले की फांस बन गया हैं। प्रदेश हाईकोर्ट में जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस विपिन नेगी की खंड पीठ के समक्ष सुक्खू सरकार यह साफ नहीं कर पा रही है 2015 में सरकार ने अंबाणी को 280 करोड़ रुपए लौटाने का फैसला क्यों लिया था।
याद रहे 2006-07 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल एनवी का किन्नौर में जंगी थोपन और पोवारी में 980 मेगावाट के दो बिजली प्रोजेक्ट आंवटित किए थे। ब्रेकल को अप फ्रंट मनी के तौर पर सरकार को 260 करोड़ रुपए जमा कराने थे। तब विपक्ष में बैठी भाजपा ने इस आवंटन में धांधली का इल्जाम लगा दिया था और ब्रेकल तय समय में अप फ्रंट मनी जमा नहीं करा पाया था। इस बीच दिसबंर 2007 में प्रदेश में भाजपा की धूमल सरकार सता में आई और उसने ब्रेकल कंपनी की वितीय और तकनीकी क्षमता की जांच करा दी। जिसमें पता चला कि ब्रेकल के तमाम दावे फर्जी हैं। इस परियोजना को हासिल करने के लिए बोली में दूसरे नंबर पर अंबाणी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर थी। उसने अदालत में याचिका दायर कर दी कि ब्रेकल अप फ्रंट मनी जमा नहीं कर पा रही है ऐसे में इस परियोजना का रिलायंस को आवंटित किया जाए। अदालत ने ब्रेकल को अप फ्रंट मनी जमा कराने का समय दिया । इस बीच ब्रेकल की ओर से अदाणी पावर ने अप फ्रंट मनी के 260 करोड़ व जुर्माने के 20 करोड़ जमा करा दिए। यह रकम अदाणी ने ब्रेकल की ओर से जमा कराए। बाद में सरकार ने ब्रेकल से पूछा भी कि ये रकम कहां से आई तो उसने जवाब में कहा कि उसने अदाणी से उधार लिया हैं।
इस बीच धूमल सरकार ने पांच आइएएस टॉप अफसरों की एक टीम गठित की व उसे जिम्मा दिया गया कि वो बताए कि इस आवंटन को रदद किया जाना है या नहीं । इन अफसरों ने विजीलेंस और आयकर विभाग की रपटों को दरकिनार करते हुए अपनी रपट सौंपी की इस समय इस आवंटन को रदद नहीं किया जाना चाहिए। दिलचस्प तौर धूमल सरकार ने इस रपट को मंजूर कर लिया और यह परियोजना ब्रेकल के पास ही रहने दी। इसके खिलाफ रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी व कहा कि धांधलियों के दम पर परियोजना हासिल की गई है। इसलिए इस आवंटन को रदद कर इस परियोजना को उसे दिया जाए।
तत्कालीन जस्टिस दीपक गुप्ता व वी के आहुजा की खंडपीठ ने 2009 में इस आवंटन को रदद कर दिया व धूमल सरकार को यह फैसला लेने का अधिकार दे दिया कि वह इस परियोजना को चाहे को रिलायंस को दे दें या दोबारा से बोली लगवाएं। इस फैसले के खिलाफ ब्रेकल व रिलायंस दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया।
जब अदाणी ने अप फ्रंट के पैसे जमा कराए थे तो उसे लेकर अदालत ने टिप्पणी की भी कि अदाणी को पूरी तरह से मालूम है वह इस रकम को अपने जोखिम पर जमा करा रहा है।
याद रहे ब्रेकल के खिलाफ धूमल सरकार के समय शुरू हुई विजीलेंस जांच अभी भी जारी है। यह दिलचस्प कहानी अलग हैं।
अब बात 2015 की
प्रदेश में दिसंबर 2012 में सरकारी बदली और वीरभद्र सिंह सरकार सता में आई। वीरभद्र सिंह सरकार ने आते की धूमल परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और धूमल के लाडले अनुराग ठाकुर की हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के खिलाफ जांच शुरू कर दी। इस बीच 2014 में दिल्ली में मोदी सरकार सत्ता में आ गई धूमल परिवार के करीबी अरुण जेटली वित मंत्री बन गए। वीरभद्र सिंह के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका चल रही थी जिसमें उनके केंद्रीय स्टील मंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार की जांच की मांग की गई थी।
यहां यह उल्ल्ेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वीरभद्र सिंह के बीच रिश्ते बहुत अच्छे रहें हैं।लेकिन वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआइ ने फिर भी मोर्चा खोले ही रखा था। कहा जाता है कि अरुण जेटली का मोदी सरकार में खूब दबदबा था। 2015 में वीरभद्र सिंह केबिनेट ने जंगी थोपन बिजली परियोजना को रिलांयस को देने का फैसला लिया और रिलायंस से जो रकम अप फ्रंट के तौर पर सरकार को मिलनी थी उससे अदाणी के 280 करोड़ लौटाने का फैसला भी किया गया।यह फैसला कितना कानूनी व गैरकानूनी था इस पर आज तक कहीं कोई बात नहीं हुई हैं। शर्त रखी गई रिलायंस सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले लेगी। इस पर सब राजी हो गए। अगर कोई कंपनी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 960 करोड़ रुपए को प्रोजेक्ट ले लें और तय समय में अप फ्रंट मनी की रकम जमा न कराए तो बोली दस्तावेजों में इस रकम को जब्त करने प्रावधान था ।
उस समय अफवाहों का बाजार गर्म रहा था। तभी एक दिन सुबह जब वीरभद्र सिंह की पुत्री की शादी थी दिल्ली से सीबीआइ की टीम हालीलाज पहुंच गई और छापेमारी कर दी। यह टीम जिस दिन हालीलाज पहुंची थी उस समय प्रधानमंत्री मोदी विदेश दौरे पर थे। कहा जाता था कि सीबीआइ की टीम जेटली के इशारे पर शिमला पहुंची थी व उसे शक था कि कोई बड़ी डील होने वाली हैं। लेकिन सीबीआइ की टीम को वीरभद्र सिंह के घर से तथाकथित कागजातों के अलावा कुछ नहीं मिला। यानी कोई बड़ी रकम हाथ नहीं लगी।
इस बीच यह परियोजना रिलायंस को दे दी गई । रिलायंस ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले ली।लेकिन बाद में रिलायंस ने इस प्रोजेक्ट को लेने से इंकार कर दिया। दिसंबर 2017 में प्रदेश से वीरभद्र सरकार सता से बाहर हो गई।इससे पहले वीरभद्र सिंह सरकार ने अदाणी को चिटठी लिखी को वह उसके पैसे देने को तैयार हैं। यह चिटिठयां क्यों लिखी गई किसके इशारे पर लिखी गई इसकी जांच होनी चाहिए थी। लेकिन 2017 में जब प्रदेश में आचार संहिता लग गई तो वीरभद्र सिंह सरकार ने अदाणी को एक और चिटठी लिखी की वह बोली के प्रावधानों के मुताबिक और काननी जटिलताओं की वजह से यह रकम उसे लौटाने में असमर्थ है और वह 2015 को अपना फैसला वापस लेती हैं।
इसके बाद प्रदेश में जयराम सरकार सत्ता में आई। कायदे से उसे वीरभद्र सिंह सरकार के 2015 के फैसले की जांच करानी चाहिए था।लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया इस बीच ब्रेकल के खिलाफ 2008 में जो विजीलेंस जांच शुरू हुई थी उसमें जयराम सरकार में मौजूदा डीजीपी संजय कुंडू जब वह सचिव विजीलेंस थे तो धारा 420 के तहत एफआइआर दर्ज हो गई थी। इस मामले में जांच कछुए की गति से भी कम तीव्रता से चल रही है।
उधर, 2019 में अदाणी ने प्रदेश हाईकोर्ट में इस अप फ्रंट मनी को वापस लेने के लिए याचिका दायर कर दी। यह मामला कितनी गंभीरता से लड़ा गया होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं। अप्रैल 2019 में जस्टिस सूर्यकांत (अब सुप्रीम कोर्ट जज) ने अंतरिम आदेश दिया कि सरकार के महाधिवक्ता के ने अदालत में कहा कि सरकार के कहने पर वह यह कह रहे है कि सरकार इस मामले को केबिनेट में ले जाएगी। अदालत ने इस मामले को तुरंत केबिनेट में ले जाने के आदेश दिए।
लेकिन जब यह आदेश तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव बिजली प्रबोध सक्सेना के पास पहुंचा तो वह यह आदेश पढ़कर हतप्रभ रह गए। उन्होंने तुरंत तत्कालीन मुख्यमंत्री जिनके पास उस समय बिजली महकमा भी था को फाइल भेजा की उन्होंने महाधिवक्ता को ऐसी कोई इंस्ट्रक्शन नहीं दी कि वह अदालत में यह कहे कि सरकार इस मामले को मंत्रिमंडल की बैठक में ले जा रही हैं। क्या मुख्यमंत्री ने ऐसी कोई इंस्ट्रक्शन दी हैं। लेकिन जयराम सरकार ने इस फाइल पर कुछ नहीं लिखा व सक्सेना के पास यह फाइल तब पहुंची जब केबिनेट में इस मसले पर बात हो गई और फैसला लिया गया कि यह रकम लौटाई नहीं जाएंगी।
उधर तत्कालीन महाधिवक्ता से रिपोर्टस आइ ने पूछा भी था कि उन्होंने अदालत में ऐसा क्यों कहा। उन्होंने सफाई दी थी कि उन्होंने ऐसा तो कुछ कहा ही नहीं था। कहीं कोई मिसअंडरस्टैंटिंग हो गई होगी व अदालत में इस बात उठाएंगे। लेकिन जस्टिस सूर्यकांत की अदालत में ऐसा कुछ नहीं उठा।बहरहाल मामला अदालत में चलता रहा और अप्रैल 2022 में जस्टिस संदीप शर्मा ने सरकार को इस रकम को अदाणी को दो महीने के भीतर लौटाने का फैसला सुना दिया। अगर इस रकम को दो महीने के भीतर नहीं लौटाया गया तो सरकार को दस फीसद ब्याज अदा करना होगा। जस्टिस संदीप शर्मा ने अपने फैसले में जयराम केबिनेट को लेकर भी टिप्पणी की थी कि केबिनेट में यह नहीं बताया कि पैसा लौटाने में क्या कानूनी पेचदकियां और जटिलताएं हैं। जाहिर है केबिनेट में क्या हुआ होगा।
उधर अदाणी ने अदालत में अर्जी लगा रखी है कि उसे ब्याज तब से अदा किया जाए ज ब से उसने यह रकम जमा कराई थी। यानी 2008 से। सुक्खू सरकार ने इस फैसले के खिलाफ स्टे मांगा है । अदालत में अदाणी के बाद सरकार की ओर से भी बहस हो चुकी हैं। अब सोमवार को अदाणी की ओर से सरकार की ओर से की गई बहस का जस्टिस विवेक ठाकुर और जस्टिस विपिन नेगी की खंड पीठ के समक्ष जवाब दिया जाना हैं।
बहरहाल अदालत का फैसला जो भी हो लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगर गलतियां या भ्रष्टाचार सरकार, नेताओं औरनौकरशाहों ने किया है तो जनता का पैसा क्यों लूटा जाए। अदालतों को यह भी जेहन में रखना ही चाहिए। अगर सरकारी मशीनरी और कारोबारियों ने ही सांठगांठ कर ली तो तो फिर जनता का पैसा कौन बचाएगा। बहरहाल अदालत के फैसले का इंतजार हैं।
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