शिमला। एशिया के सबसे बडे कारोबारी गौतम अदाणी समूह और दाडला व बरमाणा सीमेंट कारखानों में ढुलाई में लगे ट्रक आपरेटरेां के बीच पिछले 66 दिनों से चला आ रहा गतिरोध नई नवेली कांग्रेस की सुक्खू सरकार की गले का फांस बन गया हैं। पिछले 66 दिनों में वार्ताओं के दर्जनों दौर के बावजूद यह विवाद नहीं सुलझ पाया हैं।ऐसे में बरमाणा व दाडला में सात हजार के करीब ट्रक पिछले 66 दिनों से खडे हैं।
अब विवाद को सुलझाने के लिए कल सोमवार सुबह आपरेटरों, अदाणी समूह के अधिकारियों की सरकार के साथ एक और बैठक निश्चित हुई हैं। बीते रोज बरमाणा में कंपनी की ओर से मल्टी एक्सल के 9रुपए 30 पैसे प्रति टन प्रति किलोमीटर और बाकी ट्रकों का भाला भाडा 10 रुपए 30 पैसे अदा करने का प्रस्ताव दिया हैं। अब कल दाडला के ट्रक आपरेटर अपनी दरें प्रस्तावति कर मामले को सुलझाने की कोशिश करेंगे।
हालांकि मामला सुलझने के आसार कम ही लग रहे हैं।
इससे पहले बीते दिनों केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से भी ट्रक आपरेटर राजधानी में मिल चुके है और अनुराग ठाकुर भी मसले को सुलझाने का भरोसा दे चुके हैं। लेकिन अभी तक गतिरोध टूटा नहीं हैं।
अब मालभाडे का तो यह मामला ही नहीं रहा
बरमाणा व दाडला के बीच बागा में लगे अल्ट्राटेक सीमेंट कारखाने में ट्रकों का मालभाडा 10.58 से बढाकर 10.71 रुपए कर देने के बाद यह मामला व मालभाडे को तो रहा ही नहीं । यह पूर मामला राजनीतिक हो गया हैं। जब एक कारोबारी मालभाडा दे रहा है तो दूसरा कारोबारी अलग मालभाडा क्यों देगा। यह कारपोरेट जगत के कारोबारी एथिक्स के भी खिलाफ हैं।
अदाणी के पास आपरेटरों की इस दलील का कोई जवाब नहीं है कि जब अल्ट्राटेक 10 रुपए 71 पैसे मालभाडा पहले से अदा कर रहा है तो अदाणी समूह उसी उप मंडल में अलग मालभाडा तय करने की जिद क्यों कर रहा हैं। अदाणी समूह आखिर क्या खेल खेल रहा है और किसके ईशारे पर यह खेल खेल रहा हैं। वह एक ही उपमंडल में अलग-अलग मालभाडा क्यों तय करना चाह रहा हैं।
क्या भाजपा के आपरेशन लोटस काम कर रहा है या फिर कांग्रेस पार्टी की भीतर की गुटबाजी इस विवाद को सुलझने नहीं दे रही हैं। कोई तो है जो इस विवाद को सुलझने नहीं दे रहा है । अब कल देखना है कि इस विवाद का हल हो पाता है या वार्ताओं के दौर की यह आपचारिकताएं चलती रहेंगी।
सुक्खू के अधिकारी सवालों में
इस विवाद को लेकर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पहले दो बार सार्वजनिक तौर विवाद को हल होने की बात कह चुके हैं। पहले उन्होंने ऊना में दावा किया कि यह विवाद दो चाद दिनों में सुलझ जाएगा। उसके बाद उन्होंने दावा किया कि यह मसला एक दो दिनों में सुलझ जाएगा।दूसरी बार किए गए दावे के बाद अदाणी के सीईओ को वार्ता के लिए बुलाया गया लेकिन सीईओ के साथ यह वार्ता फेल हो गई। इससे सुक्खू सरकार के तमाम अधिकारी मुख्य सचिव से लेकर बाकी सुबधित अधिकारियों की भूमिका सवालों में आ गई। आखिर जब बैक चैनल वार्ताओं के जरिए मालभाडे पर कोई फैसला नहीं हो गया था तो मुख्यमंत्री से यह क्यों कहलवा दिया कि मसला एक दो दिनों में सुलझ जाएगा।
यह अधिकारियों को तय करना था कि मुख्यमंत्री जो भी कहे उसके मुताबिक फैसला हो भी। सरकार के पास पूरा खुफिया तंत्र हैं। पुलिस महकमा अलग से हैं। आइएएस अधिकारियों की पूरी फौज हैं। इसके अलावा राजनीतिक तौर पर क्या कहीं कुछ और हो रहा इस सबका लेखा जोखा पता करने का पूरा तंत्र मौजूद हैं। तमाम संसाधन राज्य के है ।बावजूद इसके किसी कंपनी के सीइओ की मुख्यमंत्री की वार्ता विफल हो जाए।
बडा सवाल यह है कि क्या नौकरशाही और सरकारी तंत्र मुख्यमंत्री से लेकर पूरी केबिनेट को किसी औदयोगिक घराने का सबआर्डिनेट बना कर रखने की मंशा पाले हुए हैं। एक ही उपमंडल में दो कारोबारी घराने अलग –अलग मालभाडा कैसे तय कर सकते हैं। इसका जवाब तो अदाणी समूह और अधिकारियों को देना ही होगा।
मंत्री कह चुके ज्यादा कुछ नहीं कर सकते
याद रहे बीते दिनों सुक्खू सरकार के मंत्री हर्षवर्धन चौहान कह चुके है कि यह आपरेटरों व अदाणी समूह के बीच का मामला हैं। सरकार इसमें पक्ष नहीं हैं। सरकार को मामले को सुलझाने में मदद कर रही हैं लेकिन मंत्री को भी यह जवाब तो देना ही होगा कि एक उपमंडल में दो औदयोगिक घराने अलग-अलग मालभाडा कैसे तय कर सकते हैं।
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