शिमला। बेशक दुनिया भर से वामपंथ तबाही के कगार पर हो लेकिन हिंदुस्तान के उतर भारत के मशहूर पर्यटन स्थल शिमला में नगर निगम में अल्पमत के होते हुए वामपंथी पांच साल राज कर गए और नगर निगम के चुनावों में ताल ठोंक कर मैदान में आ गए हैं। इस चुनावों में भाजपा को खतरा कांग्रेस से नहीं वामपंथियों से हैं।नगर निगम शिमला में भाजपा का मेयर एक बार भी नहीं बना हैं। इस बार भाजपा ने उम्मीद पाल रखी है,नतीजा17 जून को आना हैं।
2012 में पूर्व की भाजपा सरकार ने नगर निगम के मेयर व डिप्टी मेयर के प्रत्यक्ष चुनाव कराने का फैसला लिया तो मेयर और डिप्टी मेयर के पद स्थापित कांग्रेस व भाजपा की झोली के बजाय जनता ने वामपंथी पार्टी माकपा की झोली में डाल दिए। इसके अलावा माकपा की दो और महिला पार्षद जीत गई हैं। नगर निगम में माकपा के यही चार चेहरे पहुंचे बाकी पार्षद कांग्रेस व भाजपा के थे। इनमें से 12 पार्षद कांग्रेस के तो 11 भाजपा के थे।
उतर भारत में कांगेस व भाजपा के गढ़ में अल्पमत में होते हुए वामपंथ के परचम का लहराना हैरान करने वाला था। शुरू में लगा था कि ताकतवर भाजपा,कांग्रेस व वीरभद्र सरकार नगर निगम में वामपंथियों को चलने नहीं देंगे। लेकिन मेयर संजय चौहान और डिप्टी मेयर टिकेंद्र पवंर ने पांच साल तक नगर निगम को चलाया ही नहीं बहुत से मसलों पर ऐसा स्टैंड लिया कि वीरभद्र सरकार को धूल चटा दी वहीं भाजपा व उसके विधायक सुरेश भारद्वाज को राजनीति करने के लिए रास्ता ढूंढना मुश्किल कर दिया।
स्मार्ट सिटी के मसले पर वीरभद्र सरकार बाजीगरी दिखाने पर आई और फर्जी आंकड़े लेकर मोदी सरकार के पास चली गई । वीरभद्र सरकार, उसके नौकरशाह व मंत्री को उतार पर ला दिया। फर्जी आंकड़ों के आधार पर शिमला स्मार्ट सिटी की सूची से बाहर चली गई। वामपंथियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। अदालत में भाजपा भी जा सकती थी। स्मार्ट सिटी का मामला था और केंद्र में मोदी सरकार सता में थी।लेकिन भाजपा ऐसा करने में चूक गई।
शिमला स्मार्ट सिटी की सूची में बेशक न आ पाई हो लेकिन वामपंथी चेहरे उजागर करने में कामयाब रहे।अदालत में वीरभद्र सरकार व मोदी सरकार की जवाब तलबी हुई । नगर निगम में केवल चार ही वामपंथी थे।
शहर में सबसे दुखद वाक््या पीलिया को लेकर हुआ। हजारों की तादाद में लोग पीलिया के शिकार हुए कईयों की मौत भी हुई। पीलिए की वजह शहर को सप्लाई होने वाला पानी था। चूंकि शहर में पानी का वितरण चार वामपंथियों की कमान में चल रहे नगर निगम का था। नगर निगम स्टैंड ले सकता था कि शहर में जो पानी सप्लाई हो रहा हैं वो साफ हैं।चूंकि नगर निगम को आइपीएच पानी की सप्लाई करता था। आईपीएच ने शुरू में स्टैंड लिया था कि पानी के सैंपल सही हैं। लेकिन वामपंथी मेयर व डिप्टी मेयर ने उलटा स्टैंड लिया व अश्वनी खडड का दौरा कर मामले में एफआईआर दर्ज करवा दी। मामले में सीवरेज प्लांट का ठेकेदार व आइपीएच विभाग के मुलाजिम गिरफ्तार हो गए।हालांकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अफसर बच गए । वामपंथियों ने फैसला लिया कि अश्वनी खडड से पानी की सप्लाई नहीं ली जाएगी। शहर के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। लेकिन उसके बाद शहर में पीलिया नहीं हुआ।अश्वनी खडड से आज भी पानी की सप्लाई नहीं हो रही हैं।
इसके बाद शहर में पानी की सप्लाई का का मसला गंभीर हो गया। वामपंथियों ने गिरी परियोजना को जायजा लिया तो पाया कि भाजपा–कांग्रेस सरकार के शासन में बनी गिरी परियोजना में पाइपे ही घटियां लगी हैं। दो किलोमीटर तक पाइपें बदली गई व सता छोड़ने से पहले शहर के लिए 38 से 41 एमएलडी का पानी का इंतजाम कर गए।
कांगेस व भाजपा ने वामपंथियों को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा। भाजपा विधायक सुरेश भारद्वाज व बाकी नेताओं की ओर से लगातार ये हमला होता रहा कि वामपंथी विदेशों की सैर करते रहे हैं व शहर के लोग मुश्किल में हैं। लेकिन भाजपा नेताओं ने ये कभी नहीं कहा कि विदेश दौरों में भाजपा के पार्षद भी साथ रहे थे।
वामपंथियों ने जहां कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार के कारनामों का भंडा फोड़ा वहीं लालपानी में भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर की एचपीसीए की क्रिकेट अकादमी मामले में भाजपा की महिला पार्षद को जेल भी भिजवाया। हालांकि उक्त महिला पाषर्द के खिलाफ ये कार्यवाही प्रतिगामी थी। ऐसा नहीं होना चाहिए था। यहां पर अकादमी को रास्ता देने का मामला था। वामपंथियों ने इस रास्ते को बंद करवा दिया था। लेकिन महिला पार्षद वामपंथियों व भाजपा नेताओं की जंग का शिकार हो गई।
यही नहीं वामपंथियों ने मोदी सरकार में वित मंत्री अरुण जेटली के करीबी के होटल विलोबैंक के पानी के बिल का मसला उठाया और एक करोड़ से ज्यादा की रिकवरी की कार्यवाही शुरू कर दी। ये मामला कमिशनर की अदालत में चल रहा हैं।अपने शासनकाल के आखिर में शहर के नामी स्कूल बीसीएस को भी 14 लाख रुपए का पानी का बिल भेज दिया। इस नामी स्कूल से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव नरेंद्र चौहान की शिक्षा दीक्षा हुई हैं।अब इस बिल को माफ करने के लिए दबाव डाले जा रहे हैं।
पूरे पांच सालों में वीरभद्र सरकार व भाजपा ने वामपंथियों को लपेटने का पूरा इंतजाम किया लेकिन वो कामयाब नहीं रहें। आखिर में भाजपा को वामपंथियों के शासन वाले नगर निगम के पांच सालों के कार्यकाल के खिलाफ चार्जशीट तक जारी करनी पड़ी।
अब 17 जून को नगर निगम के चुनाव हैं व मुकाबला माकपा,भाजपा व कांग्रेस के बीच हैं। इससे पहले माकपा कभी मुकाबले में नहीं रही। हर बार एक दो वामपंथी जीतता रहा हैं। इस बार क्या होगा इसका इंजतार रहेगा।उतर भारत के जिस शहर में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्रसिंह व भाजपा के विधायक सुरेश भारद्वाज हो व जो शहर भाजपा व कांग्रेस का गढ़ हो वहां वामपंथियों का मुकाबले में होना दिलचस्प व हैरान करने वाला हैं।
(0)